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एलम हरि रे नाम रो सतगुरु दिया बताय alam hari re naam ro satguru diya batay



एलम हरि रे नाम रो,

सतगुरु दिया बताय ।।टेर।।


और एलम सत् शब्‍द है,

सतगुरु दिया सिखलाय।

पतवाणा प्रतीत सूं,

एलम भेट्या घट मांय।।1।।


भरम भूतसा काढिया,

लग रह्या तन के माय।

उपज्‍यो विचार एलम ते,

तब भरम सभी भग जाय।।2।।


दुबद्या डाकण देह की,

खबर बेहुणो खाय।

इकतारी निज मंत्र से,

दुविधा जाय बिलाय।।3।।


सांसे सर्प की झाट से,

शोक जहर चढ़ जाय।

मिले ज्ञान पुरुष गारडु

सांसा जाय बिलाय।।4।।


ब्रह्म वेद से मिल रहे,

कर्म राेेग कट जाय।

''लिखमो'' एलम अलेखदा,

सहजा होत सहाय।।5।। 

बेजो नांव रो कोई बणसी राख विवेक bejo naav ro koi bansi rakh vivek



बेजो नांव रो कोई बणसी राख विवेक,

 निर्गुण गांव रो।।टेर।।


नला भरी जे नामरा,
तंत तार मत तोड़।
अकल अरीटयो फेरले,
टूटे फेर ज्‍यूं जोड़।।1।।

गुरु शब्‍दांं तांणो तणियो, 
हालो होय ले हुसियार।
तार हजार इकीस छिव से,
तार तार करतार।।2।।

प्रेम प्राण सूं पायले,
पांचु पुरुष मिलाय।
कर तन मन ताकीद सूं,
शब्‍द संवारे बाय।।3।।

तुर्गुण तुर्पर चोढले,
क्षमा खुंटले बांध।
कर सांतर सत सूत ने,
टूटे ज्‍यूं दे सांध।।4।।

हरदम हरख कर पावड़ी,
प्रीति पिणछ पर गाढ़।
सुर्त निर्त दोय डोरड़ी,
चेतन चक्री चाढ़।।5।।

समझ साल में बैठ ले,
नली नाम री बाय।
राम राम रसके भणो,
हाथे हेत लगाय।।6।।

कुल रूईरी एक है,
मेहनत मांही मदार।
भील माल सारू मिले,
कीमत ज्‍यूं करतार।।7।।

ब्रह्म बेज बिरला बणे,
लाखी मंजो कोय।
कह ''लिखमो''लावो भलो कोई,
भणसी हरिजन होय।।8।।

हेली ये मान बचन सत मेरो heli ye maan vachan sat mero bhatkat kem



हेली ये मान बचन सत् मेरो,

भटकत केम फिरयो मन कंगर, 

तांही में पिव तेरो।।टेर।।


धर विश्‍वास हाल गुरु वचना,
प्रेम प्रीत कर हेरो।
घट में पुरुष बसे अविनासी,
अजर अमर घर तेरो।।1।।

परसो मेेल देश प्रीतम को,
बिन शशी भाण उजियारो।
 त्रिविध ताप तांहि नहीं व्‍यापे,
होवे कर्म झक झेरो।।2।।

अटल स्‍वांग भाग धन तेरो,
निसदिन भर्म भिचारो।
होय निसंग संग लालन की,
में सो अनन्‍द घणेरो।।3।।

च्‍यारूं वेद पुकारे प्रकट में,
निसदिन करे निवेरो।
कह ''लिखमो'' भगवत री कृपा,
मिटे जन्‍म मरण रो फेरो।।4।। 

सतगुरु आवो म्‍हारे आंगणे satguru aavo maare aangne prem bhav su bhadava



सतगुरु आवो म्‍हारे आंगणे,

प्रेम भाव सूं भदावा।

धिन गुरु आवो मेरे आंगणे।।टेर।।


कूमकूम केशर री गारा गलाउ,

घर आंगण निपवाउ।

चवण रो चौक ढलाय,

गुरु ने घणा हर्ख मनाउ।।1।।


मोह माया को छोड़ कर,

चरणां शीस नवाउं।

 उंचा आसण धर गुरां का,

दूध सूं पांव खोजाउं।।2।।


भाई बन्‍धु कुटम्‍ब सब सामिल,

गुरु से हेत कराउं।

पांव पखार लेवां चरणामृत,

हृदय शुद्ध कराउं।।3।।


प्रेम प्रीत रा थाल मंगाउ,

भाव रो भोजन बनाउ।

सत्‍य री बाजोट ढलाय गुरु रे,

अपने हाथ जीमाउ।।4।।


सतसंग कराउ हेतसूं,

भारी प्रेम सूं प्रसाद मंगाउ।

गुरुजी रा वचन घर दिखा मैं,

घणे हर्ख सूं गाउ।।5।।


हींगलू पागा रा ढोलिया ढलाउ,

सिरख पतरना बिछाउ।

तन मन धन निछावर करके,

पंखे भाव ढलाउ।।6।।


सतगुरु आया मेरे मन भाया,

शीश रो नारेल चढ़ाउ।

गुरु खिवजी से ''माली लिखमो'',

घणे हेत सूं गावे।।7।।

मन तत वाली प्‍याली पायो सरस प्रेम रो पीयो man tat vali pyali payo saras prem ro piyo



मन तत वाली प्‍याली पायो,
सरस प्रेम रो पीयो।
जनम मरण री गम नहीं,
सतगुरु शब्‍दा लीयो।।टेर।।


धरा गाजे अम्‍बर भीजे,
बरसे अमृत धारा।
अटल कंवारी प्‍याला भर देवे,
पीवे नर सचियारा।।1।।

बंक नाल धवण ने धूबै,
ब्रह्म अग्नि पल जागो।
इंडा पिंगला सुखमणा,
त्रिकुटी ताली लागो।।2।।

सोवन सिखर में बैठ झेलत है,
प्‍याला गुरु गम लेणा।
चन्‍द्रमा सूर्य दोनों सखिया,
साधु सन्‍मुख रहणा।।3।।

बिन दीपक एक ज्‍योति जगत है,
घृत बिन जागी जोत।
''लिखमा'' बोलियो आगम बिरला,
जीवत पावे मोक्ष।।4।।

मनवा चेतन रहो मेरा भाई सतगुरू मुझ पर महर करी manva chetan raho mera bhai satguru mujh par mahar



मनवा चेतन रहो मेरा भाई,

सतगुरू मुझ पर महर करी, 

जद सुर्त लहर में आई।।टेर।।


लागा प्रेम उलट गई अण में,

घट भीतर गुण गाई।

दुविदा दुरमत दूर करी,

जद राम भजन लिव आई।।1।।


मने मार करो मुसाला,

तन री तपत बुझाई।

पांचों पकड़ एकण घर लावो,

थारा किया करम कट जाई।।2।।


भीतर बेठो बहिर बोले,

ज्‍यारी खरी खबर लो भाई।

बोलत पुरूष री करो खोजना,

बाहर है या मांही।।3।।


अमर अखाड़ो सतगुरू जी री गादी,

तांमें शरण रहो मेरा भाई।

कह ''लिखमो'' सतगुरूजी शरणे,

मारे अमर झड़ी हाथ आई।।4।।

साधू जो मिलिया सो कूड़ा मिलिया न गुरू का पूरा sadhu jo miliya so kuda miliya na guru poora



साधू जो मिलिया सो कूड़ा,

मिलिया न गुरू का पूरा।।टेर।।


कण्‍ठी बांधी नाम सुनाया,

गुरूजी ने चेेेला मण्‍डाया।

आप गुरू कुछ खोज्‍या नाहीं,

चेला शब्‍द नही ढुंढया।।1।।


भगवो पहर खाक रमावे,

माथे तिलक सिन्‍दूरा।

माया मोह लिया संग डोले,

काम क्रोध में पूरा।।2।। 


पढि़या वेद पुराणा बांचे,

एलम में भरपूरा।

नाम अक्षर की खबर न जाणे,

पंडीया रह्यो अधूरा।।3।।

  

निर्गुण सगुण बाणी गावे,

बजावे ताल तन्‍दूरा।

ज्ञानी होय कर ज्ञान दीठावे,

माया तना मन्‍जूरा।।4।।


अनाहद गाजे सिवर बिराजे,

सो ही सन्‍त है पूरा।

कहे ''लिखमा'' मैं उन सन्‍तन का,

खिदमतगार हजूरा।।5।।

देवल अजब देव देह मांही सन्‍त कोई शब्‍द विचारी deval ajab dev deh maahi sant koi shabd vichari



देवल अजब देव देह मांही,

सन्‍त कोई शब्‍द विचारी।

धर इतबार आण इकबारी।।टेर।।


चलता देवल किया गुरूदाता,

जोड़ जुगत विधि सारी।

शक्ति सत्ता सूं रूप रंग रचियो,

नख नख  शिख खूब संवारी।।1।।


सात तीन मिल पांच पचिसों,

गुरू कियो कला सूं तिहारी।

नव दस किया देव दरवाजा,

लि‍खी कर्म गत न्‍यारी।।2।।


पूजे सकल असल नहीं ओलखे,

आरती संज्‍या संवारी।

आदि पुरूष रे अखण्‍ड आरती,

अनहद पूरे अपारी।।3।।


अलख अरूप अपर छन्‍द बोले,

सत्ता सकल जग सारी।

खोजे शब्‍द पखे मन पर्बा,

देख्‍दे देव मुरारी।।4।।


ठावो ठीक कियो जड् चेतन,

लीला अगम अपारी।

लीला कोई लखे ''लिखमो'',

सीर धन बांका दीदारी।।5।।

सन्‍तो सत् शब्‍द सुखधारा santo sat shabd sukh dhara naam nijhara



सन्‍तो सत् शब्‍द सुखधारा, 

लग गई डोर मिटया डर अन्‍त का

निर्खत नाम निझारा।।टेर।।


मिल सतगुरू धुन ध्‍यान धरया, 

मिट गया भरम अंधारा।

धोखा धेख मिटी सब दुनिया,

हो गया ज्ञान उजारा।।१।।


भजन बिना नर भूूूूूल्‍याे अन्‍धा,

मोह माया में मंझारा।

सुखरत सिमरण बिना बहे वैसे ज्‍यो,

क्‍या लेवे गौलारा।।२।।


 रहता राम रहे सब व्‍यापक,

ज्‍यांका सकल पसारा।

बाहर भीतर चढ़ चेतन बिच,

रूप रेख न‍हीं न्‍यारा।।३।।


शक्ति स्‍वरूप अरूप अलख हैै,

काया बिच करतारा।

रोम रोम बिच रमता दीठा,

है कर्मा सूं न्‍यारा।।४।।


निर्भय होय निरन्‍तर निरखो,

निरख्‍या होय निस्‍तारा।

''लिखमा'' अलख लखी लिव लाया,

अब उधरण का वारा।।५।।

ऐसा एक सतशब्‍द तत् सारा aisa ek sat shabd tat sara bolat purush



ऐसा एक सतशब्‍द तत् सारा,

बोलत पुरूष दुरस कर देखो, ओलख धरी इतबारा।।टेर।।


श्रवगत नाथजपाई आत्‍मा 

ज्‍यांका करो विचारा।

गुरू का शब्‍द सांच सत् मानो,

अग आणो इकतारा।।१।।


शब्‍द विचारया ज्‍याने तारिया,

जीव का शब्‍द आधारा।

मिट जाय भरम करम कट जावे,

मिलसी मोक्ष द्वारा।।२।।


शब्‍द संग होय सिखर महलचढ्,

सुण अनहद झनकारा।

शब्‍द संग निर्भय पद पाया,

अंग आई सुख धारा।।३।।


अनन्‍त भेद विश्‍वास साथ,

हरसे सिरजण हारा।

भूल भटक घर में गुरू पाया,

प्राण पुरूष आधारा।।४।।


गोरख शब्‍द कबीर विचारया,

प्रगट में बहुत पुकारया।

धिपत शब्‍द की करत संत,

जन उधरया अनन्‍त अपारा।।५।।


शब्‍द स्‍वरूपी वह सबमें व्‍यापक,

हेरे कोई हरिजन प्‍यारा।

''लिखमो'' कहे लखे बड़भागी,

सत शब्‍द इकतारा।।६।।  

जोह्या रे साधो सत् शब्‍द तत् सार johya re sadho bhai sat shabd tat saar bhajan lyrics

जोह्या रे साधो सत् शब्‍द तत् सार,

भागा भरम भरोसा आया, अवगत लेसी उधार।।टेर।।

 

मूल मेल सूंं समझ आई,

मिल गई शब्‍द मंझार।

समझ शब्‍द मिल लगन लगी तब,

शब्‍द किया विस्‍तार।।१।।

 

पलटिया पवन नाभ सूं देखो,

बंक दिशि उटत ओमकार।

बैठत सोहंं अर्ध उर्ध बिच,

दुर्स किया दीदार।।२।।

 

द्वादस दल बिच देव दरस्‍या,

उपज्‍या अनन्‍त विचार।

षट दशदल बिच ब्रह्म बोलत,

वांसू धरी इकतार।।३।। 

 

रवि चंद्र संग शब्‍द की ताली,

सुन अनहद झणकार।

अनहद सुन धुन ध्‍यान धरया है,

शब्‍द सुण्‍या रणुकार।।४।।

 

जीव ज्‍या ज्‍योति रूम रूम बिच,

अब आयो इतबार।

समदृष्टि होय कोई लखे ''लिखमो'',

करणी घर करतार।।५।।

सन्‍ता सुर्त शब्‍द सूं लागी santa surt shabd su lagi durmat dar bhagi



सन्‍ता सुर्त शब्‍द सूं लागी,

सांसा छोड़ गोडीगे  पाया जब दुर्मत डर भागी।।टेर।।


सतगुरू सेल एन अवल्‍दी,

शब्‍द बताया सांगी।

हृदय हरी भली विध पाया,

बिन रसना ठहरागी।।१।।


हेत हथाई बिच हरिजन बेठा,

सिमरण करे सुआगी।

पी प्रेम प्‍याला होय मतवाला,

कलह कल्‍पना त्‍यागी।।२।।


शब्‍द लाभ भये नाभि निरखत,

मिले पवन मिल पागी।

उलटी गंगा बक ब्रह्माण्‍ड में,

सुरत सुन्‍दरी जागी।।३।।


इड़ा पिंगला सुखमण सजे,

सुखम सेज धुन लागी।

रहता पुरूष रूप बिन रमता,

अटल रहे अणरागी।।४।।


दाता तणां दिवाला देख्‍या,

र‍वीचंद्र भया चिरागी।

जो ब्रह्म कर्म सूं न्‍यारा,

निरंतर अधर सधर सो सागी।।५।।


सायर सीर अथंग किण थाग्‍या,

पी पंछी तिस भागी।

कह लिखमो देखी ज्‍यू दाखी,

अगम गुरू री गम आगी।।६।।

ऐसा एक शब्‍द स्‍वरूपी स्‍वामी aisa ek shabd swaroopi swami nirakar nijnami



ऐसा एक शब्‍द स्‍वरूपी स्‍वामी,

पुण्‍य न पाप आप गुुरू ऐसा निराकार निजनामी।।टेर।।


जप करजो ह्यो जिण सृष्टि जोयो,

सतगुरू निवण सलामी।

दयानाथ का देख तमाशा, 

घट घट लियो मुकामी।।१।।


इला अम्‍बर बिच बाग लगायाेे,

ऐसो अलख आगामी।

भाजण घड़ण आप घण नामी,

नहीं ले सिर बदनामी।।२।।


हरख न सोक बिजोक न भोगी,

नहीं क्रोधी नहीं कामी।

कुदरत देख किया कमठाणा,

जग में जोत समामी।।३।।


अन्‍दर अला सला सब जाजे,

तज पर निन्‍दा निकामी।

हक हुजूर दूर नहीं दाता,

देवे दृष्टि तोहे स्‍वामी।।४।।


दुनियादारी में मन धारी,

सिर पर श्‍याम कलामी।

साह निहार तार कहे लिखमो,

बख्‍य गुना मैं खामी।।५।।

  

संतो अब कुछ धोखा नांही करता पुरूष रहे सब व्‍यापक santo ab kuch dhokha nahi karta purush rahe



संतो अब कुछ धोखा नांही,
करता पुरूष रहे सब व्‍यापक।
सुरत समाणी वांही।।टेर।।


मिल सत गुरू सत शब्‍द सुणाया,

सो तिर्णे के तांही।

समझ शब्‍द सत कर जाण्‍या,

भागा भरम भलाही।।1।।


मरणे का सांसा कांई कारण,

आस जीवण की कांई।

आशा की लगी अलख लखणी की,

लगी लिगन लिव ज्‍यांई।।2।।


खालक ने सब खलक उपाया,

ख्‍याली खलक के मांही।

सब सामिल कर्मा सूं काने,

परस्‍या सेवक सांई।।3।।


रहता भर्यान जावे न आवे,

रूप वर्ण कुछ नांही।

अध अधर सो आप अखण्‍डी,

अन्‍दर बोले मांही।।4।।


तन से पीतन रक्‍तन हरियो,

श्‍याम वर्ण सो नांही।

तीन गुणासूं अगम रहत है,

खोज सके कहां तांई।।5।।


वन्‍दन करलिव लाय लिखमा,

कुछ खालक बिन खाली कांई।।6।।

इण विध परमेश्‍वर भज प्राणी in vidh parmeshwar bhaj prani man mahram hua


 

इण विध परमेश्‍वर भज प्राणी,
मन महरम हुवा मोज जब लागी लहर महर री जाणी।।टेर।।


सतगुरू मिलकर समझ बताई,
कर किरपा मेहरबानी।
गुरूका शब्‍द भेद घट भीतर,
उधड़ी अणभै वाणी।।1।।

परमेश्‍वर भज भांज भर्मना,
तज गर्व गरीबी आणी।
नेकी नखै निरख नारायण,
गुरू शब्‍दो सांच्‍याणी।।2।।


सकल रिजक पूरण परमेश्‍वर,
जीव जैसे परवाणी।
सम्‍मत बिमत शीरोरो साथे,
 कीया पेलका जाणी।।3।।

राख भरोसो धर इकतारी,
दुनियां पति देवाणी।
दया कर देसी दुनिया पति,
जुगत मुक्‍त आफाणी।।4।।

उनका भजन कर भवसागर,
तिरिया भेद पद निर्वाणी।
कर करणी, करणी घर परस्‍या,
कुल कारण नही जाणी।।5।।

जिनकी हर लिव लागी है,
बड़ भागी गुरू वचनागम जाणी।
लिखमा अलख लखे जन,
गर्वा पूरा सत परवाणी।।6।।

इण विध सायब सिंवरो भाया in vidh sayab sivaro bhaya sivar fal paaya


 

इण विध सायब सिंवरो भाया,
सिंवर सिंवर फल पाया।। टेर।।


सांने मन सायब ने सिंवरो,

सोजो सुन्‍दर काया।

त्रिभिणी के रंग महल में,

सतगुरू अमी बताया।।1।।


काया बाड़ी सींचे माली,

बंक नाल रस पाया।

अजब फुल बणिया बाड़ी में,

फल संचियारी पाया।।2।।


पीर पैगम्‍बर देव दाणवा,

सब अखघड़ की माया।

अलख पुरूष तेरा पार न पाया,

गेला अनन्‍त बनाया।।3।।


मेहर हुई जद महरम पाया,

दिल अपणा पचाया।

गुरू के शरणे लखो लिखमा,

गंगा गरीबी नहाया।।411 

सतगुरू री महिमा आच्‍छी ज्‍यासूं काल क्रोध मिट जासी satguru ri mahima aachi jaasu kaal



सतगुरू री महिमा आच्‍छी,
ज्‍यासूं काल क्रोध मिट जासी।।टेर।।


ओमकार का हुवा विस्‍तारा,

देेेखोरे निज भांयां।

सतगुरूजी माने पूरा मिलिया,

ज्‍योही राह बताया।।1।।


गुरू कू भजे गुरू का चेला,

गुरू शब्‍दो गम लासी।

गुरू को छोड़ पत्‍‍थर को पूजे,

नुगरा नर्क सिधासी।।2।।


ऐडा पिगला साज सुखमणा,

सुखमण राग सुणासी।

खारे समन्‍द में अमृत बेरी,

समज्‍या सो फल पासी।।3।।


अगम निगम री बातां सन्‍ता,

गुरू बिना कोन लखासी।

गुरू के पांवा लाग लिखमा,

कट जावे जम को फांसी।।4।।

ऐसी दीवि गुरू शब्‍द सेनाणी aisi divi guru shabd senani man bhani



ऐसी दीवि गुरू शब्‍द सेनाणी,
शब्‍द सेनाणी मेरे मन भाणी,उर अन्‍दर लपटाणी।


गुरू मिलिया गम दीदी कृपा कर,

हृदय में हर लिव लाणी।

हर लिवलाणी हरख उपजिया,

प्रसन्‍न हो गया प्राणी।।1।।


भेदिया शब्‍द भरम जद भागा,

अंग एकयत आणी।

विचार चस्‍मा उधर्या अंग मांही,

बोलत ब्रह्म पिछाणी।।2।।


खोजत शब्‍द नाम निरखता,

बंक बांट भेदाणी।

ज्‍यां संग गंगा जमना सरस्‍वती,

अनद्ध बीण सुनाणी।।3।।


सुरत शब्‍द मिल चढ़ सिखर बड़,

मन्दिर जोत जगाणी।

अधर दलीचे देव दरसिया,

सुरत चरण लिपटाणी।।4।।


गुरू गेवी निज नाम सुणाया,

निर्भय पद निसाणी।

निर्भय पद लिव लाय लिखमा,

इण विध अणभै वाणी।।5।।

ऐसी मेरे सतगुरू जुगति बताई aisi mere satguru jugti batai tate shabd



ऐसी मेरे सतगुरू जुगति बताई,
तांते शब्‍द साहिबी पाई।।टेर।।


उचरया शब्‍द भक्ति जद जागी,

हृदय हरख बंधाई।

हरख हूआ सुख दुख सब बिसरिया,

मिटगी दुरमत दाई।।1।।


खोजत शब्‍द कुबद  भई काने,

सुद बुद शांंति आई।

धोखा मिट्या ध्‍यान धुन लागी,

जब मिट्या गुमान बड़ाई।।2।।


भेदया शब्‍द भरम पर टूटा,

तिमर मिट्या तन दांई।

 आया अर्थ अलख ओलख्‍या,

दरस्‍या हरि दिल मांही।।3।।


शब्‍द सुख हुवा तन मन पर्चे,

सरि सगमरी आई।

अर्स पर्स सुखमण घर साहिब,

रूम रूम में राई।।4।।


आपा देख सकल में देख्‍या,

जड़ चेतन हरि राई।

लिखमा लाग जाक बांकू,

भर्मन भूला भाई।।5।।


लग्‍या शब्‍द गुरू रंग सो है संग सदाई lagya shabd guru rang so hai sang sadai bhajan lyrics

 


 

लग्‍या शब्‍द गुरू रंग सो है संग सदाई,
समझ शब्‍द मिल दिल बिच अलख लखाई।।टेर।।


सतगुरू आदु सेण बतलाई,

पर्चा सूं पाया पिव मेरा मुझ मांही।

हुं हूति मेमत मान गुमान भरम भटकाई,

हुई खबर बरोबर खाख पाख लिव ल्‍याई।।1।।


हुइ लग्‍न में मगन लीन लिव लाई,

पाया पिव प्रेम परसाह प्राप्‍त पाई।

नित नित नवला नेह निभावे सांई,

संग सुखमना के घर पिव बितलाई।।2।।


जांका सुख अपार कहत न आई,

जोया बोलत ब्रह्म अरूप भर्मना नांही।

सूरत शब्‍द के संग परम पद पांई,

लिखमा कहे कोई सन्‍त सदा सुखदाई।।3।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...