भाया सोच लो समझ लो बात,
रेखा करमा की।
मत दीज्यो किसी ने दोष,
मानो धरमा की।।टेर।।
बूढ़ी ब्राह्मणी गोतमी,
रहे धर्म के माय।
एकाएक बेटा ने,
सांप जाकर खाय।
बेटो मर जावे तत्काल,
रेखा...।।1।।
व्याघ्र अर्जुन का आविया,
पकड़ लीना सांप।
तू कहे तो गोतमी,
कर लू काम तमाम।
बदलो लां हाथो हाथ,रेखा...।।2।।
बेटा तो नहीं जी सके,
जो थू मारे सांप।
जिन्दा इसको छोड़ दे,
नहीं कमावे पाप।
मारा बेटा को आग्यो काल,रेखा...।।3।।
सांप कहे सुण बावला,
मने दोष मत देय।
पराधीन हू मौत के,
मौत कहे सो होय।
अब सुणलो मौत की बात,रेखा...।।4।।
मौत कहे सुण सर्प थू,
हम दोनू दोषी नाय।
काल कहे सो कर रिया,
काल पुत्र को खाय।
सब टाल रिया रे बात,रेखा...।।5।।
अब मौत कहे सुणज्यो सभी,
दु:ख सुख कोई न देय।
जैसा काम करोगे भाया,
वैसा ही फल होय।
भैरूदास कहे समझाय,रेखा..।।6।।
तर्ज- चेला झूठो कुटम्ब परिवार