गाफिल क्या गावे,
निरभय पद नहीं पावे।।टेर।।
गावे ज्ञान आप रहे अन्धा,
ओरां को परचावे।
आप मिट्या प्रलक नहीं खोज्या,
भरम बाध्यो बह जावे।।1।।
गावे तान मान बहु तेरा,
राग बंध्यो हद गावे।
आसा जाल में रहे उलझियो,
तृष्णा संग बह जावे।।2।।
पहरे भेख धेक मन मांही,
मैं कूं ढेकर गावे।
हुं मांही हरि निकट नेहड़ा,
हुं में जन्म गमावे।।3।।
गुरू शब्दा सन्त सेज समाधी,
ब्रह्म खोज ब्रह्म पावे।
आपा मेट भेट गुरू सर्वज्ञी,
इण विध अण में आवे।।4।।
गावे ब्रह्म ज्ञान अनुरागी,
हुं में सब मिट जावे।
कह ''लिखमो'' मैं सन्त सभागी,
रूम रूम लिव ल्यावे।।5।।