हठ पकड़ो मती नर नार,
दखणा गरूवर की।
रेहवो गरू बचन सिर धार,
छाया तरवर की।।टेर।।
विश्वामित्र के शिष्य थे,
गालव जिनका नाव।
गरू दखणा मांगो प्रभु,
पडूं आपके पांव।
मारो जब ही होवे उद्दार,दखणा...।।1।।
गुरू बोले गालव सुणो,
कुछ नहीं चाहिये मोय।
घर जावो तुम आपणे,
रहो भजन में खोय।
मारी बात मानो इकबार,दखणा...।।2।।
दखणा बिन मोगस नहीं,
सुणो गुरू माराज।
जो मांगो जो देवस्यू,
दखणा मांगो आज।
क्यूं छोड़ो धरम की धार,
दखणा...।।3।।
धोला घोड़ा हो आठ सौ,
श्याम करण हो रंग।
गरू दखणा में लेवस्या,
लावो एक ही संग।
अब मती लगावे बार, दखणा...।।4।।
भूख प्यास जाती रही,
चिन्ता भई अपार।
घोड़े ऐसे दे न सका,
अब मरने को तैयार।
अबे बैठ गियो हिम्मत हार,
दखणा...।।5।।
गालव दु:ख देख के,
गरूड़ आये तत्काल।
चारू दिशा फिरते रहे,
प्रतिष्ठान पुर जाय।
चले ययाति राजा के दरबार,
दखणा...।।6।।
श्याम करण घोड़ा नही,
धन नहीं अतरो पास।
आया तो नटस्यू नहीं,
फिर भी दूंगा साथ।
बेटी माधवी ने कर दू लार,
दखणा...।।7।।
गरूड़ गालव वहां से चले,
लेय माधवी साथ।
हर्यश्व राजा अवधपति से,
जाकर कीनी बात।
दे दो घोड़ा न रख लो नार,
दखणा...।।8।।
दो सौ घोड़ा पास में,
और न कोई उपाय।
एक पुत्र पेदा किया,
वापस देवो भलाय।
जन्मे वसुमना राजकुमार,
दखणा...।।9।।
काशीपुरी के राजवी,
दीवोदास था नाम।
गरूड़ गालव और माधवी,
पहुंचे उनके धाम।
वो ही बात कही समझार, दखणा...।।10।।
दो सौ घोड़ा श्याम कर्ण,
यही है मेरे नाथ।
पुत्र एक जनम्या पछे,
नारी ले जावो साथ।
हुए प्रतर्दन राजकुमार,
दखणा...।।11।।
भोज नगर के राजवी,
उसीनर बलवान।
लेय माधवी पहुंच गये,
सुणा दिया फरमान।
राजा मन में कियो विचार,
दखणा...।।12।।
दो सौ घोड़ा देय कर,
पुत्र पाऊ एक।
और उपाय कुछ भी नहीं,
लिख्या विधाता लेख।
शिवि जनम्या राजकुमार,
दखणा...।।13।।
छ: सौ घोड़ा और एक कन्या,
ले पहुंचे गरूवर के पास।
और दुनिया में है नहीं,
नहीं किसी की आस।
गरूजी एक पुत्र करो त्यार,
दखणा...।।14।।
गरू कहे इस लड़की को,
पहली लाता पास।
चार पुत्र पैदा किया,
करता खाता साफ।
बेटा अष्टक हुआ गरूद्वार,
दखणा...।।15।।
गरू दखणा पूरी हुई,
पच पच कीदा काम।
बेटी सूपी बाप ने,
हट मत पकड़ो राम।
कहे भेरूदास विचार, दखणा...।।16।।
तर्ज- चेला झूठो कुटम्ब परिवार