धन माया में कई राच रियो,
नागो आयो लारे काई लायो।
जीवतो रियो जीवां को जीवो,
हरि का भजन बना रितो रियो।।
मन थने केऊ थोड़ो मान जा कहियो,
पूरण ब्रह्म ने कांई भूल रियो।।टेर।।
महर कीदी दाता मानकी दीदो,
प्रथम डेरो गरभ में हियो।
नौ मास उन्दे मुख झूल्यो,
नपट नारकी में लूम्ब रियो।।1।।
कसट कियो जदी असट हियो,
नाम रंजन भाया मुख से लियो।
आठ महीना गणो संकट रियो,
नोवे महीने जनम लियो।।2।।
राम राम कर भाये जनम लियो,
गरभ घाटी ने लांग गियो।
जनम देबा वाला ने भूल गयो,
जगत जाल में आण रियो।।3।।
दु:ख सुख डायपण भूल गयो,
ज्ञान एमानी चूक गयो।
सब भूल्यो भाया भूख नहीं भूल्यो,
रो रो बोबो छूक रियो।।4।।
जवानी दीवानी थने जैड़ कियो,
दोई दूत्यां मल बांध दियो।
माना कलाली थने मोह लियो,
इन्द्रियां के बचे भूत हियो।।5।।
कला कूतरी कबद कापरी,
दुरमत को दागो लाग रियो।
चिन्ता चतराई नन्द्रा प्यारी,
दबद्या के घर कई राच रियो।।6।।
डॉडा सूले ज्यू नस नस कुळे,
हाय तौबा हाय तौबा कर रियो।
हिम्मत बलछड़ी रळक पड़ी,
सरदा मियॉंल मूंडो छोड़ दियो।।7।।
टूटी टपरी ने जीवो सांतरी करे,
गांठा गांठा बन्ध लगाय रियो।
दारू मंगावे बन्दो जीव सतावे,
पापां का नीपण नीपरियो।।8।।
जीवाजी को झूपड़ो जोजरो हियो रे भाया,
डगमग डगमग डोल रियो।
भलो बड़क्यो ज्यूं थाम्मो देवे,
मोरछंग को बंध टूट गयो।।9।।
जमराज थने लेबा ने आयो,
मार मगदलाऊ बारे लायो।
धर्मराज के धक्के गियो,
कुम्भ कुण्ड में भदरायो।।10।।
मन मान्या जो ज्ञानी व्हिया,
न मान्या जांको ऊ ढंग हियो।
गुजर ने गरू चरणां में लियो,
कनीरामजी चाकर रावळो हियो।।11।।