गुरू सा किण विध फेरू माला,
मन्दिर में थे मक्का भरदी,
आडा ठोक दिया ताला।।टेर।।
चीड़ी कमेड़ी काग कांवलो,
चहुं दिस गाल्या आला।
नीव की तरफ नजर भर नरख्या,
घूमों का घुड़शाला।।1।।
छाती चिपक छिपलिया मूते,
मकडिया दे रही जाला।
साफ सफाई सफेदी कहां वहां,
खड़ा भीतर काला।।2।।
देव के नाम देवरा थरप्या,
दिल के बीच दिवाला।
धाप्यो नहीं रेण दिन धूम्यो,
पेरों में पड़ग्या छाला।।3।।
सुणो नहीं थे श्रवण थाक्या,
आंख्या फिरग्या जाला।
सोचो नहीं थे हिया में हेरो,
हृदय करे उजाला।।4।।
कलश पूर कंवली बरतावो,
परदे खोलो नाला।
रामदेव का पंथ सूगला,
भर भर घोथे प्याला।।5।।
गरूदेव दर्शन नहीं दीना,
घर नहीं दीन दयाला।
रामबक्ष अलमस्त दीवाना,
परस्या सदर शिवाला।।6।।