अवल बाणी कवल छाणी,
अवल का उपदेश है वो जी।
सांच कहता झूठ माने,
ऐसी है संसार।
चेला ओगण गाळा गणां देख्या वो जी।।
मुख मीठा पण्ड झूठा ,
अन्तर कपटी काछ लपटी।
अन्त खारमखार खार ,
चेला ओगण गाळा गणां देख्या वो जी।।1।।
हां वो गुरासा हीरा का बोपारी आया वो जी,
हीरा जहाज भर लाया।
संत मल्या सोदो करे वो जी,
मूंगे मोल बकाया।
सतगरू सायब तार लेवो जी,
है कोई भजन भभेकी,
सतगरू सायब तार लेवो जी।।1।।
शिखर माये कंकर भरिया,
पत्थर का परवार है वो जी।
पेली खारा पाछे मीठा,
अन्त खारमखार, चेला ओगण...।।2।।
सतगरू मारा सायर है वोजी,
मैं गलियो का नीर।
कूद पडियो दरियाव में वो जी,
कंचन भया शरीर, है कोई भजन...।।2।।
आकड़ा ने अमृत सींचे,
आम कणी विध होय है वो जी।
नीम के नारेल लागे,
ऐसी वस्तु जोय,चेला ओगण...।।3।।
सतगरू पारस खान है वो जी,
लोहा जग संसारा।
पारस के संग टगी रमे वो जी,
कंचन हो जावे सारा, है कोई भजन...।।3।।
बचन गुरां का जेल न जाणे वो जी,
अजिया का आहारा।
बड़ा से बेबाद करे वो जी,
ऐसी कपट की खान,चेना ओगण...।।4।।
सीप सायर में नीपजे वो जी,
नीपजे एकण सारा।
छमकी मारू प्रेम की वो जी,
बीण लाऊ कण सारा, है कोई भजन...।।4।।
गुराजी सत धरम ने जेलता वो जी,
मट जावे भरम अंधेरा।
शंख फडिंदा की बीणती ओ जी,
भो भो दास तुम्हारा, है
कोई भजन..।।5।।
आवो चेला बचन जेलो,
खरधर खाण्डा धार है वो जी।
देव डुंगरगर बोलिया,
हो जावे भव जल पार,चेला ओगण...।।5।।