उसमें क्या जाणे से सारा,
जाणेे जाणण हारा ।।टेर।।
रणुकार के उपरे,
सोले आंगल परियाणा।
मति सोहनी नेणां निरख्यां,
नाम वेद में ज्यांणा।।1।।
इन्दर भाण के उपरे,
तेज आकाशा तारा।
यहां भी शक्ति वहां भी शक्ति,
शक्ति का विस्तारा।।2।।
रूप बिना एक देवल दरसे,
अपरम रूप अपारा।
दो अक्षर से करो दोस्ती,
जब उतरो भव पारा।।3।।
चौदह लोक उसी का चाकर,
सायब है कर्तारा।
''लिखमीदास'' वहां घर पहुंचा,
देहि बिना दीदारा।।4।।
ओउ से काया भई सोउ,
सोउ से मन होय।
नीर निरंकार स्वासा भई,
''लिखमीदास'' भल जोय।।5।।