सीताराम सीताराम, सीताराम बोल,
राधेश्याम राधेश्याम, राधेश्याम बोल ।
काहे प्राणी भटक रहा है, जीवन है अनमोल रे,
सीता राम सीता राम, सीता राम बोल।
राधे श्याम राधे श्याम, राधे श्याम बोल ।।टेर।।
ना कर बंदे मेरी मेरी, जीवन खाक की ढेरी,
चार दिनों की चाँदनी है, और फिर है रात अँधेरी ।
धर्मराज के आगे तेरे , खुल जाएंगी पोल रे...।।1।।
माटी के रंगीन खिलौने, माटी में मिल जाएगा,
आज नहीं तो कल यहॉं पर, कर्मो का फल पायेगा ।
हीरा जन्म न फेर मिलेगा, कूड़े में न रोल रे...।।2।।
साथी खाली हाथ गये हैं, होश तुझे क्यों आये ना,
जोड़ जोड़ भर लिए खजाने, साथ चले एक पाई ना।
भवसागर के अन्दर तेरी, नैया रही है डोल रे...।।3।।
जिसको समझे यह जग अपना, वो एक दर्शन मेला,
अंत काल पछतायेगा, जब जायेगा तूँ अकेला।
सुंदर तन पे दाग लगाया, मैली चादर ओढ़ रे...।।4।।
लाख़ चौरासी के चक्कर में, काहे को तू भटक रहा,
भले बुरे कर्मो की फाँसी, जिसपे तू तो लटक रहा।
साँस साँस पे राम सुमर ले, लागे न कोई मोल रे...।।5।।
ये माया है आनी जानी, ये जग झूठा सपना,
मात पिता सुत बंधु प्यारे, कोई नहीं है अपना।
चार भाई श्मशान में जाकर, देंगे अकेला छोड़ रे...।।6।।
चला चली का मेला है यहाँ, कोई आए कोई जाये,
राजा रंक यहाँ न कोई, ये जग एक सराय।
ना जाने किस वक्त कहाँ पर, काल का बाजे ढोल रे...।।7।।
मुठ्ठी बांधे आया जगत में, हाथ पसारे जाएगा,
कोठी बंगले महल खज़ाना, यहीं धरा रह जाएगा।
गहरी नींद में सोने वाले, अब तो आँखे खोल रे...।।8।।
एक पतंग की तरह है प्राणी, तेरी अमर कहानी,
पांच लुटेरे लूट रहे हैं, तेरी ये जिंदगानी।
आसमान पे उड़ने वाले, कट जायेगी डोर रे..।।9।।
पाँच तत्व का बना पिंज़रा, जिसका नाम है काया,
पँछी रैन बसेरा करता, देकर सांस किराया।
एक दिन ख़ाली करना पड़ेगा, ये पिंज़रा अनमोल रे...।।10।।
क्या तूँ लेने आया जगत में, क्या तूँ लेकर जायेगा,
दुर्लभ मानुष जन्म रे बंदे, फेर नहीं तूँ पाएगा।
अभिमान में अँधा होकर, काहे मचावे शोर रे...।।11।।
बनके हँस तूँ मोती चुग ले, जीवन सफ़ल बना ले,
राम नाम अमृत फल ख़ाकर, अपना आप बचा ले।
लख चौरासी चक्कर में क्यों, फिरता डाँवा डोल रे...।।12।।
माँ के गर्भ में लटक रहा था, वादा खूब किया रे,
विषय विकारों की आँधी में, वादा भूल गया रे।
जकड़ जंजीरों से ले जाये, बन के जाये चोर रे...।।13।।
कर्म बही के अन्दर क्या है, हेराफेरी कर ले,
दुनियाँ भर के खाते चाहे, अपने नाम तूँ कर ले।
सच्चे मालिक के आगे तूँ , कुछ न सकेगा बोल रे...।।14।।
देख दिए की भांति तेरी, बाती बुझ जायेगी,
काल तूफाँ के आगे तेरी, हस्ती मिट जायेगी।
रहा न कुछ भी बस में तेरे, प्रभु से नाता जोड़ रे...।।15।।
अब तो नाम सुमर ले प्राणी, समय यह बीत रहा है,
ना कोई बन्धु सखा है तेरा, न कोई मीत रहा है ।
दूर किनारा सब ने किया है, दिया अकेला छोड़ रे...।।16।।
काहे तन का गर्व करे रे, एक दिन ये जल जायेगा,
जैसे जल से गले रे कागज़, ऐसे तूँ ग़ल जायेगा ।
गुरु ज्ञान को गले लगा क्यों, माया रहा बटोर रे...।।17।।
अब तो नेकी कर ले बंदे, साथ तेरे जो जायेगी ,
ये मतलब की दुनियाँ तेरा, कब तक साथ निभायेगी ।
कुछ तो धर्म कमा ले मूरख, डायन बुद्धि को छोड़ रे...।।18।।
तुझसे वृक्ष भले है बंदे, देते है जो छाया,
पँछी जिसकी गोद में सोते, फल दे पुण्य कमाया।
सबको सुख देते हैं भैया, लेते ना कोई मोल रे...।।19।।
जीवन तो एक नदिया है और, सुख दुःख है दो किनारे,
बहती तेज धारा के अन्दर, तुझको अब जीना रे ।
राम नाम जहाज़ में चढ़ जा, विरथा मत यूं डोल रे...।।20।।
जिस रंग में राम जी राखे, उसी में रहना चाहिये,
जो कुछ दिया है उसने, उसमें शुक्र मनाना चाहिये।
ऊपर देखें दुःख घणेरा, नीचे सुख की खोर रे...।।21।।
धन्ना जाट था भक्त निराला, पत्थरों को भोग लगाए,
तू खायै तो मैं भी खाऊँ, शाम सवेरे गायेे।
एक सहारा तेरा दाता, तेरे बिन ना और रे...।।22।।
नामदेव था भक्त निराला, राम नाम गुण गाता,
जो कुछ दिया प्रभु ने उसको, उसी में शुक्र मनाता।
श्वान बन भगवान थे आये, दर्श किया अनमोल रे...।।23।।
दु:शासन ने द्रोपदी की, खींची सभा में साड़ी,
चरणों में बस ध्यान लगाकर, द्रोपदी ये पुकारी।
लाज बचाओ कान्हा मेरी, बार बार ये बोली रे...।।24।।
दीन दुखी का दुःख अपना ले, होगी नैया पार रे ll
जो इनको तड़पायेगा, ये देंगे नींव उखाड़ रे।
कभी संभल न पाएगा तूँ, करले बात पे गौर रे...।।25।।
दुखिया तेरे पास खड़ा और, पर तूने मौज़ उड़ाई रे,
भूखा प्यासा पड़ा पड़ौसी, न उसकी भूख मिटाई रे ।
जीवन ख़ुशियों से भर जाये, उसके आंसू पोंछ रे...।।26।।
पाँच तत्व की बनी कोठरिया, एक दिन ये गिर जाएगी,
कागज़ की है नैया तेरी, पानी में बह जाएगी।
अकड़ अकड़ पग धरे धरा पर, चलता मूँछ मरोड़ रे...।।27।।
जाग मुसाफ़िर भोर भई क्यों, सोता चादर ताण रे,
काल कुठार है होकर आया, क्यों होता अनजान रे ।
काल बली से बच न पाये, चाहे लगा ले जोर रे...।।28।।
दुर्लभ मानुष जन्म को पाना, बच्चों का कोई खेल नहीं,
जनम जनम के शुभ कर्मों का, होता जब तक मेल नहीं ।
उत्तम कर्म कमाई कर ले, छल कपट को छोड़ रे...।।29।।
सोने में तो रात गँवाई, दिन भर करता पाप रहा,
इसी तरह बर्बाद रे बंदे, करता अपना आप रहा l
बादल बनकर काल गरजता, छाई घटा घनघोर रे...।30।।
मेरे राम हैं बड़े दयालु, सब कुछ देते जाते हैं,
छोटे बड़े का भेद न करते, सब की भूख मिटाते हैं।
दीपक पी ले प्रेम का प्याला, राम नाम रस घोल रे...।।31।।
बलवंत तूँ गुण गा ले प्रभु का, मुश्किल हल हो जायेगी,
झोली फैला देख सुरेन्द्र, ख़ुशियों से भर जायेगी ।
किसी तरह की कमी न होगी, हो जाएगी मौज़ रे...।।32।।