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ठाकुर मेघ‍सिंह मन भावे करते सतसंग ध्‍यान thakur Meghsingh man bhave karte satang dhyan bhajan lyrics

 

ठाकुर मेघ‍सिंह मन भावे ,

करते सतसंग ध्‍यान।।टेर।।

 

छोटी सी रियासत जिनकी ,

मोटा मन का भाव।

पूजा पाठ और भजन भाव में ,

राखे गणो ही चाव।

हर सतसंग माये आवे।।1।।

 

भैरूदान चारण ठाकर के ,

नौकर था विश्‍वासी।

सेवा करता हुकम उठाता ,

और बात नहीं आसी।

दिन ऐसे ही बीते जावे।।2।।

 

एक दिनां की बात बताऊं ,

सुणणी पड़सी थाने।

दुनिया है या दोय रंग की ,

कोई माने न माने।

कुण समझे और समझावे।।3।।

 

भैरूदान के मन में ,

छायो पाप बड़ो ही भारी।

मेघसिंह को मारण खातर ,

राखे हाथ कटारी।

वारी बुद्धी भ्रष्‍ट हो जावे।।4।।

 

एक दिन ठाकुर साहब के ,

पड़ी कछेड़ी में रात।

अंधारी रात में जावे महल में ,

भैरूदान था साथ।

अब ऊपर वार चलावे।।5।।

 

हाथ उठाया भैरूदान ने ,

अब वार करूं भरपूर।

दोड्या आया साण्‍ड सामने ,

हटग्‍या राजा दूर।

यूं मेघसिंह बच जावे।।6।।

 

भैरूदान की छाती में ,

साण्‍ड रोप दियो सींग।

हाथ भी उल्‍टा फिर गया ,

गयो खून से भीग।

अब खुद को नाक कट जावे।।7।।

 

मेघसिंह ने भैरूदान का,

खूब किया उपचार।

नौकर चाकर आ गया ,

और ठकुराइन भी लार।

होश नहीं वांने आवे।।8।।

 

ठकुराइन कहने लगी ,

नहीं समझी मैं बात।

भैरूदान ने ले रखी क्‍यू ,

कटारी हाथ।

यो आप ने मारबो चावे।।9।।

 

ठाकुर केवे सुण ठकुराणी ,

या कई मन में सोची।

चारण चाकर है विश्‍वासी,

राम करे जो होसी।

ओ जल्‍दी त्‍यार हो जावे।।10।।

 

भीतर से सुणता रहा ,

भैरूदान सब बात।

होश हुआ माफी मांगी ,

जोड़े दोनों हाथ।

मुझे दण्‍ड फरमावे।।11।।

 

यही दण्‍ड है तेरे लिए ,

काम क्रोध को छोड़।

परमारथ में लाग जा,

विषयों से मुख मोड़।

यो भी भगती में लग जावे।।12।।

 

भगत हित प्रभु साण्‍ड बणे ,

लीना प्राण बचाय।

पापी को दीनी सजा ,

हृदय बिराजे आय।

आणन्‍द आणन्‍द हो जावे।।13।।

 

ठाकुर मेघसिंह के ,

एक ही राजकुमार।

उमर सोला साल की ,

सज्‍जनसिंह होसियार।

मात पिता मन भावे।।14।।

 

तीन महीना पहले ही ,

परण बीन्‍दणी लाया।

एक दिन घोड़े पर चढ़ा,

माथा जा फुड़वाया।

वांके माथे घाव हो जावे।।15।।

 

दवा दारू का असर नहीं ,

जहर दूणा बढ़ जावे।

अन्‍त समय नजदीक है ,

वांने कौण बचावे।

मौत सराणे आवे।।16।।

 

मेघसिंह कहे सज्‍जनसिंह ने ,

सुणले बेटा बात।

करम साथ में चालसी ,

कोई नहीं चाले साथ।

किया करम सभी भुगतावे।।17।।

 

ब्रह्माण्‍ड फोड़कर निकल गये ,

कुवर साहब के प्राण।

जहां से आया वहीं गया ,

न कोई नफा न हाण।

कथा भैरूलाल बतलावे।।18।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...