धर विश्वास साध लख एवा,
ज्यारे देव दरसिया देह मांही।।टेर।।
साध लख एवा शब्द विचारे,
समझर हालेे जुग मांही।
शब्द विचार कुबद विडारे,
उन मन रहे सिवारे साई।।1।।
धीरज धरे धोखे नहीं आणे,
अभिमान मारे मांही।
पाले पर नदिया कलह कल्पना,
सुखिया वायत धर मांही।।2।।
करणी करे सो सकल विध जाणे,
अंग जरणा जारे जांही।
भीतर भव भगवत रो आणे,
भेद रहया भर्म नाही।।3।।
विचार विचार विकार विडारेे,
नाम टेक छांडे नाही।
कूड़ कपट अहंकार निवारे,
असलो अवक भाके नाही।।4।।
सील सन्तो का ज्ञान गरीबी,
गहरा गखा समद सांई।
हद में छत्ता धसे बेहद में,
जुगत मुगत ज्वानी जाई।।5।।
से समदृष्टि सकल विद जाणे,
इष्ट अनेक एक सांई।
चोलत ब्रह्म अपर छन्द,
लखवा लगन धन मगन मांही।।6।।
मन छन्दे चालो लख एवा,
मन महरम सब के मांही।
मन समज्यां जसो साधू,
''लिखमा'' जनम मरण मिट जाई।।7।।