गरू मुरती नुरती को निरखूं,
चरण कंवल सुख पाऊं।
मैं गरूदेवन को ध्याऊ।।टेर।।
तन मन धन ओरी शीश उतार कर,
गरूजी के चरणां चढ़ाऊं।
धर्म अर्थ काम ओरी मोक्ष,
सब गरू कृपा से पाऊं।।1।।
काम क्रोध लोभ ओरी मोह को,
गरू कृपा से उड़ाऊ।
शील सन्तोष ओरी दया गरीबी,
गरू कृपा से पाऊ।।2।।
जात पांत कुल काण मेट के,
सतसंग गंगा में नहाऊ।
शब्द सिमरण और ज्ञान अगनी में,
करम काट के उड़ाऊ।।3।।
सतसंग माये गणे सुख उपजे,
नज धर्म ने धाऊ।
नज धर्म की शाखा वेद में,
ऊ करके शीश नमाऊ।।4।।
दाैैैैैलारामजी माने सतगरू मलिया,
गरू महमा गुण गाऊ।
भैरूनाथ गुराजी के शरणे,
चरण कंवल चित लाऊ।।5।।