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घरे पधारो गुरुदेव उतारू हर री आरती ghare padharo gurudev utaru har ri aarti

 

घरे पधारो गुरुदेव

उतारू हर री आरती।टेर।


गुरजी तनड़ा की 

मैं लावु हर के बातिया

मनड़ा रो तेल पुराय

उतारू हरकी आरती ।1।


सुरती नुश्ती की 

मेंलु बातियाँ

प्रेम की जोत जगाय 

उतारू हर की आरती ।2।


गुरु मारा असंग जुगारो 

मैं भटकीयो जी

अबके माने लिदो चरणा ये लगाय

उतारू हरकी आरती ।3।


गुरु मारा नाव 

धर्म ने नरबे जाणीयो

कदी ने भुलु दीना नाथ 

उतारू हर की आरती ।4।


भाया सुणो समयो

 जो धर्म ने धावज्यों

शंकर नाथ भाके सत परवाण 

उतारू हरकी आरती ।5।

ऐसी आरती घट ही में कीजो राम रसायण निशदिन पीजो aisi aarti gat hi me kijo Ram rasayan nisdin pijo

 ऐसी आरती घट ही में कीजो।

राम रसायण निशदिन पीजो।।टेर।।

 

घट ही में पांच पचीसो पण्‍डा।

घट ही में जाग रही जोत अखण्‍डा।।1।।

 

घट ही में पाती रे फूल चढ़ावे।

घट ही में आतम देव मनावे।।2।।

 

घट ही में देवल घट ही में देवा।

घट ही में सहज करे मन सेवा।।3।।

 

घट ही में शंख सकल घन तूरा।

घट ही में प्रेम परस निज नूरा।।4।।

 

घट ही में गावे हरि का दासा।

घट ही में पावे पद परकाशा।।5।।

 

जन हरिराम राम घट माही।

बिन खोज्‍या कोई पावत नाही।।6।।

संज्‍या आरती सुमरण होई सुमरण करो भाया महाफल होई sanjya aarti sumaran hoi bhaya mahafal hoi

 संज्‍या आरती सुमरण होई।

सुमरण करो भाया महाफल होई।।टेर।।

 

पहली आरती प्रेम परकाशा,

भरम करम का हो गया नाशा।।1।।

 

दूजी आरती दिल में देवा,

जोग जुगत से कर लीजे सेवा।।2।।

 

तीजी आरती तीन गुण धाया,

एक अगोचार सब कोई पाया।।4।।

 

चौथी आरती सतगुरू धाई,

सतगुरू धाई प्रेम पद पाई।।5।।

 

पांचवी आरती पद निर्वाणा,

कहे कबीर सतलोक समाणा।।6।।

अजमलजी रा कंवरा आरती थारी रे ajmal ji ra kanwara aarti thari re

 

अजमलजी रा कंवरा आरती थारी रे।

थारा ने थारा नांव की रे,

सांज संवेरी रे,

मेणादे का लाला,

रूणेजा वाला आरती थारी रे।।टेर।।

 

पहला जुगा री आरती वो राणी,

रतनादे संजोई है।

राणी रतनादे रा धर्म से वो तरग्‍या,

पांच करोड़ी रे।।1।।

 

दूजा जुगा री आरती वो राणी,

तारादे संजोई है।

राणी तारादे रा धर्म से वो तरग्‍या,

सात करोड़ी रे।।2।।

 

तीजा जुगा री आरती वो राणी,

द्रोपद संजोई है।

राणी द्रोपद रा धर्म से वो तरग्‍या,

नोय करोड़ी रे।।3।।

 

चौथा जुगा री आरती वो राणी,

संजादे संजोई है।

राणी संजादे रा धर्म से वो तरग्‍या,

बारा करोड़ी रे।।4।।

 

चारू जुगा री आरती वो राणी,

रूपादे संजोई है।

राणी रूपादे रा धर्म से वो तरग्‍या,

तैतीस करोड़ी रे।।5।।

आरती करां वो गरूदेव देवन की गरू देवन की सब संतन की aarti kara vo gurudev devan ki sab santan ki

 


आरती करां वो गरूदेव देवन की।

गरू देवन की सब संतन की।।टेर।।

 

पहला आरती धवल बासक की,

कछ मछ और सात समंद की।।1।।

 

दूजी आरती धरण गगन की,

चांद सूरज और तारा मण्‍डल की।।2।।

 

तीजी आरती ब्रह्मा विष्‍णु शिव की,

दस अवतार और चारू वेदन की।।3।।

 

चौथी आरती हद बेहद की,

चारों खूंट और चवदा भवन की।।4।।

 

नवल आरती अमर बधावो,

नवलोजी अरज करे चरणन की।।5।।

ओम जय गरूदेव हरे तन मन धन से करूं आरती om jay gurudev hare tan man dhan se karu aarti



ओम जय गरूदेव हरे,
तन मन धन से करूं आरती।
सब ही विघन टरे।।टेर।।

पांच तत्‍व पच्‍चीस प्रकृति,
स्‍थूल रूप धरे।
भक्‍त जनो के कारणे,
विश्‍वरूप धरे।।1।।

दस इन्‍द्री पांच प्राण मन,
बुद्धि सूक्ष्‍म रूप करे।
सत्रह तत्‍व शरीर धार के,
तेजस लहर करे।।2।।

अपने आप को जाना नहीं,
कारण नाम धरे।
अविद्या ऊपर छाने से,
प्राज्ञ वास करे।।3।।

तीन शरीर को जाणन हारा,
इनसे रहत परे।
महा कारण उन्‍ही का नाम है,
तुर्या राज करे।।4।।

प्रेमानन्‍द शीतल स्‍वामी,
तुर्या अतीत परे।
भैरवदास सतगरू के शरणे,
गरू में वास करे।।5।।

गरूजी थांकी आरती ओ मुरती दया धर्म परवाण guruji thaki aarti o murti daya dharm parvan



गरूजी थांकी आरती ओ,

मुरती दया धर्म परवाण।

दिन भर करूं आरती।।टेर।।

 

साधू भाई काया को थाल मंजाय,

जिसमें पांच पच्‍चीसू बाती।

बना दिवला लागी लोय,

बना तेल बाती।।1।।

 

साधू भाई पीओ पीओ अमृत छाण,

स्‍नान करती नत बरती।

अष्‍ट कमल के माय,

सरसद पद रहती।।2।।

 

साधू भाई घण्‍टा बाजे अनहद नाद,

सुरत नुरत दोनों रहवे लपटी।

तरबीणी टकसाल,

तीनों धारा बहवे उलटी।।3।।

 

साधू भाई आठ पहर दिन रेण,

सिंवरण जड़ लागो दन राती।

छ: सौ इक्‍कीस,

लिव वा पोती।।4।।

 

साधू भाई उगम महल का खुल्‍या कपाट,

संत सिंवरण की लागी कूंची।

अगर कपूर संजोय,

पदमगरू करे आरती।।5।।

कैसे करू आरती तू है स्‍वयं परकाशी kaise karu aarti tu hai swayam prakashi bhajan lyrics

 


तुम पूरण ब्रह्म अचल अखण्‍ड अविनाशी,

कैसे करू आरती तू है स्‍वयं परकाशी।।टेर।।

 

तेरी रोशन से ये रोशन है जग सारा जी जग सारा...

तू जगत गैस क्‍या दीपक क्‍या करत विचारा।।

 

तुम धन होय बरसो जगत सकल मन जारा।

और कैसे कराऊं स्‍नान तुझे मैं प्‍यारा।।

 

अब कठे चन्‍दन लगाऊं शीश नहीं पासी।

कैसे करूं आरती तू है स्‍वयं परकाशी।।1।।

 

फूलों में आप फिर कैसे फूल तुड़ाऊं जी...।

तोड़े सो तो फिर किसके हाथ मंगाऊं।।


अगनी में आप फिर कैसे धूप चढ़ाऊं।

तू घी मेवा में मिष्‍ठान क्‍या भोग लगाऊं।

 

जालर में तेरी झणकार है कौन बजासी जी।

कैसे करूं आरती तू है स्‍वयं परकाशी।।2।।

 

तेरी कुदरत बाजे शंख सदा दिन राती...।

और बाजे नगारा अजब गेब धुन आसी।।

 

मैं कहां तक महिमा करूं अकल थक जासी।

फिर शेष रहा सो है मम रूप संगासी।।

 

तू नभ ज्‍यूं व्‍यापक सर्व देश का वासी जी।

कैसे करूं आरती तू है स्‍वयं परकाशी।।3।।

 

तुम स्‍वामी सेवक देव पुजारी पण्‍डा।

तुम सम नहीं दूजा सात दीप नव खण्‍डा।।

 

तुम शुद्ध चैतन्‍य सामान्‍य सकल ब्रह्मण्‍डा।

कहे भारती परमानन्‍द अदल उड़े झण्‍डा।।

 

तेरा सत् चित् आनन्‍द रूप सदा सुख राशि।

कैसे करूं आरती तू है स्‍वयं परकाशी।।4।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...