तुम पूरण ब्रह्म अचल अखण्ड अविनाशी,
कैसे करू आरती तू है स्वयं परकाशी।।टेर।।
तेरी रोशन से ये रोशन है जग सारा जी जग सारा...।
तू जगत गैस क्या दीपक क्या करत विचारा।।
तुम धन होय बरसो जगत सकल मन जारा।
और कैसे कराऊं स्नान तुझे मैं प्यारा।।
अब कठे चन्दन लगाऊं शीश नहीं पासी।
कैसे करूं आरती तू है स्वयं
परकाशी।।1।।
फूलों में आप फिर कैसे
फूल तुड़ाऊं जी...।
तोड़े सो तो फिर किसके हाथ मंगाऊं।।
अगनी में आप फिर कैसे धूप
चढ़ाऊं।
तू घी मेवा में मिष्ठान
क्या भोग लगाऊं।
जालर में तेरी झणकार है
कौन बजासी जी।
कैसे करूं आरती तू है स्वयं
परकाशी।।2।।
तेरी कुदरत बाजे शंख सदा
दिन राती...।
और बाजे नगारा अजब गेब
धुन आसी।।
मैं कहां तक महिमा करूं
अकल थक जासी।
फिर शेष रहा सो है मम रूप
संगासी।।
तू नभ ज्यूं व्यापक
सर्व देश का वासी जी।
कैसे करूं आरती तू है स्वयं
परकाशी।।3।।
तुम स्वामी सेवक देव
पुजारी पण्डा।
तुम सम नहीं दूजा सात दीप
नव खण्डा।।
तुम शुद्ध चैतन्य सामान्य
सकल ब्रह्मण्डा।
कहे भारती परमानन्द अदल
उड़े झण्डा।।
तेरा सत् चित् आनन्द रूप
सदा सुख राशि।
कैसे करूं आरती तू है स्वयं
परकाशी।।4।।