प्रभुजी तेरी किस विध करू मैं बडाई।।टेर।।
ब्रह्मा निशदिन वेद उचारे,
शंभू ध्यान समाधी धारे।
सनकादिक नारद मुनि भारे,
अज हूं पार नहीं पाई।।1।।
भूमि अगन पवन जल अम्बर,
सरवर सागर परवत कन्दर।
सूरज चांद सितारे सुन्दर,
तुम सब सृष्टि बणाई।।2।।
देव दनुज मानव नर नारी,
पशु पक्षी जल थल नभ चारी।
सकल जीव सन्तान तुम्हारी,
तुम पालक सुख दाई।।3।।
विश्व रूप बनाकर नाश करावे,
नाश कराकर फिर उपजावे।
ब्रह्मानन्द पार नहीं पावे,
अचरज खेल रचाई।।4।।