अब डर क्या आया भरोसा भगवत का।
भागा भय आखर अन्त का ।।टेर।।
लगन लगी जद मगन भया,
पच्या पाया अगम घर का ।
अगम निगम बिच गमकर खोजो,
धर्ता बिच परस्या कर्ता का।।१।।
परस्या करता दिल बिच दरस्या,
मिलिया है महरम मनका ।
बोलत पुरूष परा पर पेला,
यह गेला निर्भय पद का ।।२।।
अवगति को गतको गुण जाणे,
गुम कर ज्ञान गया गुरू का ।
गुरू ज्ञान भया धुन ध्यान धर्या है,
तिमर मिटिया है सब तन का ।।३।।
जिन गाया जिन अगम बताया,
अर्ध अधर करता सबका।
लिखमा लाभे सो बड़ भागी,
अणरागी निर्भय पद का ।।४।।