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संतो अब कुछ धोखा नांही करता पुरूष रहे सब व्‍यापक santo ab kuch dhokha nahi karta purush rahe



संतो अब कुछ धोखा नांही,
करता पुरूष रहे सब व्‍यापक।
सुरत समाणी वांही।।टेर।।


मिल सत गुरू सत शब्‍द सुणाया,

सो तिर्णे के तांही।

समझ शब्‍द सत कर जाण्‍या,

भागा भरम भलाही।।1।।


मरणे का सांसा कांई कारण,

आस जीवण की कांई।

आशा की लगी अलख लखणी की,

लगी लिगन लिव ज्‍यांई।।2।।


खालक ने सब खलक उपाया,

ख्‍याली खलक के मांही।

सब सामिल कर्मा सूं काने,

परस्‍या सेवक सांई।।3।।


रहता भर्यान जावे न आवे,

रूप वर्ण कुछ नांही।

अध अधर सो आप अखण्‍डी,

अन्‍दर बोले मांही।।4।।


तन से पीतन रक्‍तन हरियो,

श्‍याम वर्ण सो नांही।

तीन गुणासूं अगम रहत है,

खोज सके कहां तांई।।5।।


वन्‍दन करलिव लाय लिखमा,

कुछ खालक बिन खाली कांई।।6।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...