घर में धंधो बारे धंधो,
धंधो कर कर मरसी रे।
इण धंधा में सार नहीं ,
जम दूता पटकसी रे।।1।।
संग लो खर्ची रे,
या राम नाम की खर्ची,
तो थाणे बाद्या सरसी रे।।टेर।।
कोडी कोडी माया जोड़ी,
जोड़ जमी मे धरसी रे।
कंचन सरीखा महल छोड़,
थणे जाणो पड़सी रे।।2।।
मात पिता थारे घर की तिरिया,
रो रो घर में मरसी रे।
चार दना की छेल छबीली,
थारी सभी बगड़सी रे।।3।।
भाई बंध थारे कुटम्ब कबीला,
सब मतलब का गरजी रे।
अन्त समय थने छोड़ छाड़,
थारो कुटम्ब बिछड़सी रे।।4।।
भव सागर से तरणो वे तो,
ले सतगरू को शरणो रे।
गरू प्रताप चौथमल केवे,
राम सिवरसी रे।।5।।