संज्या आरती सुमरण होई।
सुमरण करो भाया महाफल होई।।टेर।।
पहली आरती प्रेम परकाशा,
भरम करम का हो गया नाशा।।1।।
दूजी आरती दिल में देवा,
जोग जुगत से कर लीजे सेवा।।2।।
तीजी आरती तीन गुण धाया,
एक अगोचार सब कोई पाया।।4।।
चौथी आरती सतगुरू धाई,
सतगुरू धाई प्रेम पद पाई।।5।।
पांचवी आरती पद निर्वाणा,
कहे कबीर सतलोक समाणा।।6।।