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सुख तो विषया रो वालो छोड़ दे मारी हेली sukh to vishya valo chod de mari heli

 

सुख तो विषया रो वालो,

छोड़ दे मारी हेली।

विषया में बहुत विकार ।।टेर।।

 

सपरस से भोन्‍दू मरे मारी हेली,

पडियो खाडा मे जाय।

सबद सुणने मिरगो आवियो मारी हेली,

लियो पारधी मार।।1।।

 

रसकस से मच्‍छी मरे मारी हेली,

लेवे छुरिया सू मार।

रूप देखी ने पतंग आवियो मारी हेली,

तन जल व्‍हे गियो खाक।।2।।

 

सुगन्‍ध देखने भंवरो आवियो मारी हेली,

लियो डाडा बिच मार।

केहवे कबीरा धर्मीदास ने मारी हेली।

विषया में बहुत विकार।।3।।

मन्‍दर में काई ढूंढती फरे मारी हेली mandir me kai dhundhti fare mari heli

मूरत कोर मन्‍दर में मेली,

वा कई मुखड़े बोले हेती ये।

डोडी जुड़ दरवाजे ऊबी,

बना हुकम नहीं खोले।।1।।

 

मन्‍दर में काई ढूंढती फरे मारी हेली,

ले ले हरदा में ह‍र को नाम,

जाल्‍या में कांई जांकती फरे।।टेर।।

 

इण काया में गंगा खळके,

भर भर धोबा पीले।

मूरख ने गम कोयने,

राई के ओले परबत डोले।।2।।

 

नाभ कंवल से नदिया उल्‍टी,

पांचों कपड़ा धोले।

सुरत सला पर दे फटकारो,

दिल को दागो धोले।।3।।

 

माणक दान भर्या काया में,

मन छावे जो लेले।

कहे कबीर सुणो भाई,

साधू हर भज लावा लेले।।4।।

पूरण होजा मारी हेली ये थने रोकण वालो नाय puran hoja mari heli ye thane rokan valo nay

थने रोकण वालो नाय,

थने बरजण वालो नाय,

पूरण होजा मारी हेली ये।।टेर।।

 

पेली पहल तो दही जमाया,

पछे दुहाड़ी गाय।

बचल्‍यो गऊ का पेट में,

घीरत हाटा जाय।।1।।

 

पहली नर तो मैं जनमियो,

पछे बढ़ोड़ा भाई।

धाम धूम में पिता जनम्‍या,

पछे जनमी माय।।2।।

 

हल हाला चू डूगरा,

बेल्‍या गऊ के पेट।

हाली हीन्‍दे पालणे,

बीज खेत के माय।।3।।

 

इण्‍डा बोलता में सुण्‍या,

बच्‍या बोलता नाय।

गगन मण्‍डल के बैठ झरोखे,

दास कबीरा गाय।।4।।

हेली मारी गगन मण्‍डल हीन्‍दो गालियो heli mari gagan mandal hindo galiyo

हेली मारी गगन मण्‍डल हीन्‍दो गालियो,

घाल्‍यो चंपेला की डाल।

सुरत सुहागन हीन्‍दो दे रिया,

हीन्‍दे नकलंग नाथ।।1।।


झरणा जारो न ममता मार लो,

मारी जोड़ी का भरतार।

आयोड़ो ओसर लारा ले चालो।।टेर।।


हेली मारी केल कांटा के संग,

हिया कांटो केला ने खाय।

नुगरा मानस ने परमोदता,

पत सुगरा की जाय।।2।।


हेली मारी चोरी करग्‍या नर चोरड़ा,

वो धन गियो मती जाण।

के तो माथा का रण उतरिया,

कन हियो आसाण।।3।।


हेली मारी गगन मण्‍डल बाती जले,

सुरता बणी है कलाल।

पांच पचीस मल मद पीवे,

सहजा माडी मतवाल।।4।।


हेली मारी रतन राल्‍यो हाजी रेत में,

 लोहा कन्‍चन होय।

अलपी होती घर वा साध ने,

कीदी नुगरा की लार।।5।।


हेली मारी तोला राणी तीन नर तार्या,

लालो साध सधीर।

असंग जुगा को जैसल चोरड़ो,

पल में कीदो पीर।।6।।

पियाजीऊ मिलबा चालो हेली शुभ सिणगारो piyaji milba chalo heli subh singaro

जल और जतन तन पर डालो,

कचरा ने परो निवारो।

मान मायला ने धोय परे,

साफ करो तन सारो।।1।।


पियाजीऊ मिलबा चालो हेली,

शुभ सिणगारो हेली सारो ही सिणगारो।।टेर।।


ज्ञान घाघरो पहर सुहागन,

नेम नाड़ा ने सारो।

गुरगम गांठ जुगत कर दीजे,

लोक हंसेलो सारो।।2।।


चेतन चूंदड़ी ओढ़ सुहागन,

प्रेम पटली पाड़ो।

लहर गोठे कोर दुवाले,

जद्या रीजे पिव थारो।।3।।


ओर पिया मारे दाय न आवे,

अखण्‍ड अमर वर मारो।

इण पिया से लग रही ताली,

पलक न रेऊ न्‍यारी।।4।।


नाथ गुलाब माने पूरा मलिया,

दियो सिवरण को सारो।

भवानीनाथ सतगुरां शरणे,

सहजा ही लगायो किनारो।।5।।

कैसे कह समझाऊ हेली बेगम देश की बात kaise kah samjaau heli begam desh ki baat



 कैसे कह समझाऊ हेली,

बेगम देश की बात।।टेर।।


क्षर अक्षर अक्षर नहीं मंडता,

न कोई काना मात।

हाले नहीं होठ कण्‍ठ जीब्‍या नहीं जेले,

न सांसा के साथ।।1।।


देखाऊ तो देख नहीं  पूंगे,

न काेेेई नैणा मात।

केऊ तो केहण कथन में नाही,

न कोई भणत भणात।।2।।


छाने केऊ छाने कोयने,

न कोई प्रकट बात।

छाने चौड़ा के बीच मायने,

अणहद हो रही आवाज।।3।।


हे है जो तो न वो बाबजी,

न न कहे सो आप।

है न का बीच मायने,

नाथजी ने नाथ्‍या जो अनाद।।4।।


खण्‍ड ब्रह्माण्‍ड पण्‍ड की महमा,

आ तो ऊली बात।

चोथो पद तो भेद आगे,

पांचवों परख्‍या सुखपात।।5।।


पदमगरू परवाणी मलग्‍या,

हीरो दीदो हाथ।

लाडूरामजी सिवरण दीदी,

माला फरे है दन रात।।6।।


सोह सेन सेन में सेनी,

सेनी आगे आप।

गुजर गरीबो 'कनीरामजी' केवे,

भलो समझायाे मारा बाप।।7।।

 

आप ताे अरूप हेली रूप बण्‍यो माया जाल aap to aroop heli roop banyo maya jaal



आप ताे अरूप हेली,

रूप बण्‍यो माया जाल ।।टेर।।


सूरत शब्‍द मल हेलो पाड्यो,

सुन चेतन में आण।

माया मेंटू ब्रह्म भेंटू,

अड़गड़ की करू ओलखान।।1।।


दस दरवाजा बन्‍द कर देखो,

माया बाहर जाण।

रूम रूम में रमती भलगी,

भीतर बैठी है तम्‍बू ताण।।2।।


नाभ कंवल के गांठ लगाले,

पावण ऊंचो ताण।

जोय पलीतो जपके चढ़गी,

नीची पड़ी घुड़ आण।।3।।


इला पिंगला सोध सुखमणा,

पांचू तंत पछाण।

मूं जाणू माया मटगी,

माया का फडूकरिया निशाण।।4।।


माया छालो बहुत उजालो,

सोहनी शिखर दीवाण।

मूं तो जाणू पूंगग्‍या,

पूंगता ने लीदा ताण।।5।।


आंख भींच उनमुनी ने हाजे,

गाठा भींचे कान।

झीणी ज्‍योति मोत्‍या जैसी,

माणका का मड्या है मंडाण।।6।।


अनहद भेद भेद के आगे,

माया मटी रेमाण।

गुजर गरीबो 'कनीरामजी' बोले,

 मटगी खेंचा ताण।।7।।


आप ताे अविनाशी हेली हद्द पेली सीव aap to avinashi heli had peli seev

 


आप ताे अविनाशी हेली हद्द पेली सीव।।टेर।।


धरती ज्‍यूं परमेश्‍वर हेली,

आबा माये जीव।

आबा ऊठी धरती में मलग्‍या,

जीव पलट हेग्‍या पीव।।1।।


पवन ज्‍यूं परमेश्‍वर हेली,

भभूल्‍यां में जीव।

भभूल्‍यों पवन में मलग्‍यो,

जीव पलट हेग्‍या पीव।।2।।


जल ज्‍यूं परमेश्‍वर हेली, 

बरबड़ा में जीव।

बरबड़ो जल में मलग्‍यो,

जीव पलट हेग्‍या पीव।।3।।


अग्नि ज्‍यूं परमेश्‍वर हेली, 

तड़ींगा में जीव।

तड़ींगाे अग्नि में मलग्‍यो,

जीव पलट हेग्‍या पीव।।4।।


जल थल अग्नि पवणा पाणी,

ब्रह्मा विष्‍णु महेश शिव है।

अन्‍त समया में जावे एकलो,

न्‍यारी देवे नीव।।5।।


रम रम करता राम मलग्‍या,

पिव पिव करता पीव।

गुजर गरीबो 'कनीरामजी' केवे,

मटगी जीव की रीव।।6।।

भजन बिना जीव गणो घबराय काल यो अणाचेत को आय bhajan bina jeev gano gabray kal yo

 


भजन बिना जीव गणो घबराय।

काल यो अणाचेत को आय।।टेर।।

 

मनख देह बहुत कठिन पाई,

हरि का भजन करो रे भाई।

मन थू कीदो गर्भ में कोल,

मुख से राम नाम तो बोल।।

 

राम नाम से तर गया देख भगत प्रहलाद।

काम क्रोध मद लोभ मोह ने परो छोड़ बलवान।

ग्राह से गज को लिया रे छुडाय काल यो…..।।1।।

 

कमाई सांची करी रे कबीर,

जाट धन्‍ना की देख तकदीर।

ध्रुव ने मिल्‍या रे अटल बेवाण,

विभिषण मल्‍या लंक गढ़ राज।।

 

करमाबाई को खीचड़ो मूलकदास का टूक।

सबरी के घर बोर आरोग्‍या साक विदुर घर भूख।

झूपड़ी नामदेव की छाय काल यो ....।।2।।

 

द्रोपदी के गणो बढ़ायो चीर,

भजन से तरग्‍या कालू कीर।

गणिका सुवा पढ़त तारी,

अहिल्‍या शिला भई नारी।।

 

नरसी जी की हुण्‍डी सिकारी बणकर साँवल सेठ।

ऐसा जोधा सजन तुम्‍हारे गया स्‍वर्ग में ठेट।

करी प्रभु मीरा तणी सहाय काल यो ....।।3।।

 

भजन से गई भगत तार्या,

काम प्रभु भगता का सार्या।

मन थू मन की मत माने,

नरक में पटकेलो माने।।

 

मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर।

मन के मते मत चालज्‍यो मन पलक पलक में और।

मन यो नरका में जाय काल यो ....।।4।।

 

कहे मन हेली चुणवास्‍या,

बींदणी परण घरां लास्‍या।

कहे मन करस्‍या हरक उछाव,

हजारो रूपया करो उपाय।।

 

छल पाखण्‍डी ब्‍याज बटा में उणा तिगुणा होय।

अन्‍तर काणी राखे ताकड़ी, तीन पाव का सेर।

धान से धन दूणो हो जाय काल यो....।।5।।

 

धर्म में पैसो कियो न फजूल,

गड़ावा गहणो देह में सूल।

गोडा थाक्‍या भजन करस्‍या,

गणां दिन हाल नहीं मरस्‍या।।

 

माला की फुरसत नहीं घर धंधा के माय।

टाबर छोरा घरां खेलावां मंदिर जावां नांय।

काम की गणी रात दिन लाय, काल यो....।।6।।

 

अबे तो दम चढ़बा लाग्‍यो,

दौड़ घर वेदां के भाग्‍यो।

वेदजी नुसखो बणवायो,

रूपया सौ को खर्च आयो।।

 

और बता वेदां ने नाड़ी घरज पड्या से देय।

हाय भराय रात दिन करता राम नाम नहीं लेय।

रोग तो दन दूणो छा जाय, काल यो....।।7।।

 

गाँव का साता पूछबा आय,

करो थे धर्म पुण्‍य की सहाय।

गॉंव का धर्म धर्म बोल्‍या,

बीट अब आंख्‍यां का खोल्‍या।।

 

हाल धर्म थे मती करो रे मैं नहीं मरू रे अबार।

जीवतड़ा थे धर्म करो तो दूणो पाप चढ़ जाय।

जीव यो दीनी नाड़ हलाय, काल यो....।।8।।

 

लुगाई भाई बन्‍द बेटा,

टूट गई नाड़ीया उतारो हेटा।

जीव यो जुलक जुलक जांके,

पतरणा सीरक न फांके।।

 

सांस उगासू चालियो धरतीया लियो उतार।

तुलसी चरणामृत कुण लावे आधी रात के माय।

जीव से घर छोड़ीयो नहीं जाय, काल यो....।।9।।

 

लो आये जम के दूत भारी,

पकड़ मूसल की ठपकारी।

लुगाई बेटा याद आवे,

जीव यो घर में रह जावे।।

 

आया कुटम्‍ब परिवार का लेग्‍या हाथो हाथ।

आछी बुरी सब अठे रह गई पाप पुण्‍य दोई साथ।

लावणी घासीदास यू गाय, काल यो...।।10।।



 

हेली मारी परलोका मत जाय भजन लिरिक्‍स heli mari parloka mat jaay bhajan



हेली मारी नहीं रे धरण असमान,
उठे तो मारी सुरता लागी ऐ हेली।
चन्‍दा नहीं रे उठे भाण,
भाण बना बहुत उजियालो हेली।।
परलोका मत जाय हेली,
नहीं तो उठे लाल कालो पीलो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।1।।

ओलक लेणा यो ही उणियारो हेली,
शीतल बरण मारो श्‍याम ।
नहीं तो उठे लाल कालो पीलो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।टेर।।

हेली मारी उरद सुरद के बीच,
उठे तो एक जगड़ो मच्‍यो ये हेली।
सूरा लड़े ये रण मांय,
कायर को उठे कोनी पतियारो हेली ।
परलोका मत जाय हेली।।2।।

हेली मारी गूंगो गावे ये उठे राग,
बहरो तो उठे सुणबा वालो हेली।
पांगलो नाच करे,
आन्‍दो तो उठे नरखण वालो हेली।
परलोका मत जाय हेली।।3।।

हेली मारी संध कीजे तीन सौ न तीस,
जिण पर ताे एक तखत हजारो हेली।
जिण पर सुन्‍न अकीस,
जिण पर तो मारो सिरजन हारो हैली।
परलोका मत जाय हेली।।4।।

हेली मारी भंवर गफा के मांय,
उठे तो एक तपसिड़ो तापे हेली।
नहीं तो उठे तापनवालो हेली,
धूणा नहीं रे भभूत।।5।।

हेली मारी मलग्‍या रे नाथ गुलाब,
गरूजी मलिया बहुत मतवाला हेली।
मंदरिया में बहुत उजियालाेे हेली,
गावे भवानी नाथ ।।6।।




मारी मेरम को साधू न मल्‍या मारी हेली भजन लिरिक्‍स mari meram ko sadhu na malyo mari heli bhajan lyrics


 

मारी मेरम को साधू न मल्‍या मारी हेली,

किण आगे करूला संदेश ।

मैंं  तो पुरबियो पूरब देश रा मारी हेली,

बोली लखेला कोई नर होय।।टेर।।


सेंठा से गुल नीपजे मारी हेली,

गुळ से मीठी खांड।

खांड पलट मसरी भई मारी हेली,

सतगरू को परताब ।।1।।


के तो कोरा तल भला मारी हेली,

कन लीजे  तेल कढ़ाय।

अद बचलो खराब कूलर मारी हेली,

दोय दना माये जाय ।।2।।


कड़वा पाना की कड़वी बेलड़ी मारी हेली,

कड़वा ही फल होय।

मीठा तो जद जाणजे मारी हेली,

बेल बछेवा होय ।।3।।


संध भई तो क्‍या भई मारी हेली,

चहुंदिस फूटी न बास।

माये कपट का बीजड़ा मारी हेली,

फेर उगण की आस ।।4।।


दू लागी बेला जड़ी मारी हेली,

हियो बीजा को नास।

बोल्‍या कबीरा ''धर्मीदास'' ने मारी हेली,

नहीं उगणिया री आस ।।5।।




कदी चालाला उण देश में मारी हैली भजन लिरिक्‍स kadi chala la un desh me mari heli bhajan lyrics



कदी चालाला उण देश में मारी हैली,

गिया नर पाछा नहीं आय।

अणी देश रो लोग अज्ञानी,

हेली पल पल परला में जाय ।।टेर।।


निर्गुण सेरी सांकड़ी मारी हेली,

चढियो न उतरियाे जाय।

ऊंची चढूू तो  नीची गिर पडू मारी हेली,

जीव अफरता जाय ।।1।।


हीरा से जड़ी या जालरी मारी हेली,

मोतिया जड़ी है गनात।

कंकू बरणी दायमी मारी हेली,

ओ ही पियाजी को देश ।।2।।


नहीं ऊगे नहीं आथसी मारी हेली,

नहीं अंधेरा होय।

एक भाण की क्‍या पड़ी मारी हेली,

करोड़ भाण परकास ।।3।।


नहीं बरसे नहीं ओल रे मारी हेली,

सूखा न हरियाे होय।

कहत ''कबीरा'' की बिणती मारी हेली,

मरे नहीं बूढ़ा होय ।।4।।





हेली ये मान बचन सत मेरो heli ye maan vachan sat mero bhatkat kem



हेली ये मान बचन सत् मेरो,

भटकत केम फिरयो मन कंगर, 

तांही में पिव तेरो।।टेर।।


धर विश्‍वास हाल गुरु वचना,
प्रेम प्रीत कर हेरो।
घट में पुरुष बसे अविनासी,
अजर अमर घर तेरो।।1।।

परसो मेेल देश प्रीतम को,
बिन शशी भाण उजियारो।
 त्रिविध ताप तांहि नहीं व्‍यापे,
होवे कर्म झक झेरो।।2।।

अटल स्‍वांग भाग धन तेरो,
निसदिन भर्म भिचारो।
होय निसंग संग लालन की,
में सो अनन्‍द घणेरो।।3।।

च्‍यारूं वेद पुकारे प्रकट में,
निसदिन करे निवेरो।
कह ''लिखमो'' भगवत री कृपा,
मिटे जन्‍म मरण रो फेरो।।4।। 

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...