सन्ता भाई नहीं मस्जीद नहीं मंदिर मेंं,
हद वेहद दोनूं दरसे, ओलखो अन्तर में।।टेर।।
गुरू जी रा वचन ज्ञान कर सोजो,
सोहले मुलसा करे में।
गजरा शीस किण दिश गया,
साेधोला किस घट में।।१।।
मूसलमान मस्जिद में पुकारे,
कर कर उंधा सिर ने।
हिन्दू दौड़ द्वारका जावे,
पूजे घडिया पत्थर ने।।२।।
ब्रहमा थाका विष्णु भी थाका,
देख देख दफ्तर ने।
बावन अच्छर का लखो चारो,
उयरोला किस घर में।।३।।
अलख पुरूष अटल अविनासी,
नहीं जावे देखण में।
कह ''लिखमो'' कृपा सतगुरू की,
पायो भेद भजन में।।४।।