अर्ज करूं अजमालजी र चांवा,
काल कुबद रा हेरा टार ।।टेर।।
सारद माता तोने सिवरू,
गरबा गणपति लागू पांय।
तो सिमरया रोजी रिजक पूर्वो
भूल्या अक्षर देवो बताय ।।१।।
पिछम देश पीरां रा थाणा,
अन्वी आवे थारी जात ।
लाडू चोखा चढ़े चूरमा,
सोही आवे पीरां रे दाय ।।२।।
भर भादवे थारे मेलो भरीजे,
नवखंड आवे थारी जात।
आंधाने थे आंख्या दीजो,
पांगला ने दीजो धणी पांव ।।३।।
कस्तूरी री पूजा चढ़े
अगर धूप आरती उतार ।
डूबत झांझ बोयता ने तारयो,
सोई पीरा दियो लार ।।४।।
अनन्त सिद्धा रे शरणे आया,
सरण लीवी पीरा री छाप ।
गुरू खींवजी शरणेे लिखमा बोले,
परतिज्ञा बानेरीपाल ।।५।।