संत बड़े परमारथी ,
शीतल ज्या रा अंग।
तपत बुझावे और की,
देवे भगती रंग।। दोहा।।
सुण रे मन दादा,
समता में सार गणो।
समता सार थोड़ी ममता मार,
धार लीजिए धरणो।।1।।
कोई अणुतो अबको बोले,
पाछो नहीं बकणो।
गलिया खेड़ा भसे गडकड़ा,
लारे नहीं भसणो।।2।।
सबर वाला की खबर राम ने,
दुख सु नहीं डरणो।
बाया को थू भलो छावजे,
जद व्हेलो तरणो।।3।।
नाडूल्यो बण नाडा माई,
गणो नहीं उबकणो।
हंसा का सागर में भलजे,
राखजे मोटापणो।।4।।
समता शस्त्र साध निशाणो,
सदा इने आदरणो।
दुश्मन के थू फूल बिछाजे,
जद व्हेलो तरणो।।5।।
करड़ाई में कई काडेलो,
नमन राख चलणो।
या तो थू जाणे मनड़ा,
एक दिन तो मरणो।।6।।
जो करणो सो भरणो भाया,
होई जमा धन धरणो।
संता शरणे भैरव पकड़ ले,
दीना नाथ को शरणो।।7।।