बिना पर कैसे संग उडाऊ,
मैं तो भारत देख घबराऊ।।टेर।।
दोऊ दल भिड़े महाभारत में,
अण्डे कैसे बचाऊ।
चपला होतो संग उड़ाऊ,
अण्डे कहां ले जाऊ।।1।।
दीनानाथ गोपाल बिना,
किससे अरज लगाऊ।
तुम जानत प्रभु घट घट की,
तुमको क्या समझाऊ।।2।।
कहत कृष्ण सुण धीर धर पंछी,
तोही गजराज पठाऊ।
जे तेरे अण्डे दबते दीखे,
घण्टा तोड़ गिराऊ।।3।।
इतनी सुणकर तृप्त भयो पक्षी,
चरणन शीश नमाऊ।
सूर सहाय करी अण्डन की,
जनम जनम जस गाऊ।।4।।