तेरी कुदरत पर वारी वारी, बलिहारी,
धन अलख अगम मत थारी।।टेर।।
धरण पसार मांड पंड नव खण्ड,
अमर अधर अधारी।
ख्याली खेल किया बिच खेले,
सब घट श्याम मुरारी।।1।।
पांच तीन मिल सब जुग राता,
अवगत को गत न्यारी।
भेलो रह लेवे सन्त बिरला,
ओ अचरज एक भारी।।2।।
गुरू तेरा आसण अधर सधर नही डोले,
धूणी तेरो गगन मंजारी।
रमे रूप बिन रहे निरन्तर,
हलको कहुं या भारी।।3।।
कहे ''लिखमो'' भवसागर बेड़ी,
तारण तिरण ते तारी।
अगम निगम तेरी गम तूही,
मै बेगम शरण तुम्हारी।।4।।