कांई साराऊ कांई गुण गाऊ,
आरती करूं सिमरथ सांई,।
आरती करूं अजमल जी रा रामा,
नव खण्ड में बोले तूंही।।टेर।।
आसा पूरी आसरो थारो,
आंधा पांगल ने ठोड़ धणी।
कण कीड़ी मण कूं जरी ने पूरे,
ऐसे सायब रे धर्म धड़ी।।1।।
तीन लोक खण्ड खण्ड में सिमरे,
थाने सिमरे धरती रो धणी।
सात समुन्द्र राजा सागर सिमरे,
मीन रटे जल मांही धणी।।2।।
देव देव दुर्गा में सिमरे,
सुर सिमरे सुरगां मांही।
सपत पोया लावा सग सिमरे,
धरण धारी वारे भार नहीं।।3।।
ब्रह्मा विष्णु महेश थांने सिमरे,
सेस भाण सीता मांई।
पव पुरुष हरि का विस्तारा,
साख भरे स्वर्गा मांही।।4।।
वारा है चौवारा,
ध्यान धरे मुनिजन सारा।
गंगा गीता ज्ञान गरीबी,
ऐ निकलंक रा विस्तारा।।5।।
जुगां जुगां री भीड़ निवारी,
इष्ट धर्म गुरु सांचियारा।
''लिखमा'' कहे सेवा में बैठा,
अलख अगम अपरमपारा।।6।।