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भूला सो तो फिरे भर्म में भरिया bhula so to phire bharm me bhariya chatur purush so



भूला सो तो फिरे भर्म में भरिया,

चतुर पुरूष सो साहिब सिंवरे, 

और पुरूष सो चिडि़या।।टेर।।


एक नर करे उजलाई अंग उजलावे,

मन मेला नहीं भिलिया।

अजण मेल काम अंग अध का,

कर्म कोच में कलिया।।1।।


एक चालत चतुर सुधर मुख बोले,

रूप वर्ण सब सलिया।

हरि की भक्ति बिना बेकासा,

जन्‍म गमावे अलिया।।2।।


रूपज कविता जोइज सिकर सिकर,

दधि सुद्ध आगर सडिया।

धोखे धरे अण होती होती,

हरख शोक में कलिया।।3।।


वेद विवेक हीये सुद्ध उपजे,

लखे रोग दाग लिया।

आप दु:खी आपो नहीं खोजे,

सांसे स्‍वार्थ रे रलिया।।4।।


सुघड़ पुरूष तो साहिब सिंवरे,

चोरासी सूं टलिया।

शब्‍द पिछाण ब्रह्म कूं भेदे,

हृदय हरि सूं रलिया।।5।।


चतुराई ने मान गुमान,

ऐ दु:ख चूले चलिया।

''लिखमा'' अलख लखा गत होई,

नाम साहिब रा सलिया।।6।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...