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मारो सत चित आनन्‍द रूप कोई कोई जाणे रे maro sat chit anand roop koi koi jane re

 

मारो सत चित आनन्‍द रूप,

कोई कोई जाणे रे।

मेरो परम अखण्‍ड स्‍वरूप,

कोई बिरला जाणनहार।

कोई कोई जाणे रे।।टेर।।

 

 द्वेत वाणी का मैं हूं श्रृष्‍टा,

मन वाणी का मैं हूं दृष्‍टा।

अनुभव सिद्ध अनूप,

कोई कोई जाणे रे।।1।।

 

पंच कोष से हूं मैं न्‍यारा,

तीन अवस्‍था से भी न्‍यारा।

मैं हूं साक्षी रूप,

कोई कोई जाणे रे।।2।।

 

जनम मरण मेरो धरम नहीं है,

पाप पुण्‍य मेरो करम नहीं है।

अज निरलेपी रूप,

कोई कोई जाणे रे।।3।।

 

सूर्य चन्‍द्रमा में तेज मेरा,

अग्नि में भी औज मेरा।

मैं अद्वेत स्‍वरूप,

कोई कोई जाणे रे।।4।।

 

तीन लोक का मैं हूं स्‍वामी,

घट घट व्‍यापक अन्‍तरयामी।

ज्‍यूं माला में सूत,

कोई कोई जाणे रे।।5।।

 

राजे स्‍वरूप निज रूप पिछाणो,

जीव ब्रह्म में भेद मत जाणो।

मैं हूं ब्रह्म स्‍वरूप,

कोई कोई जाणे रे।।6।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...