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बिना पर कैसे संग उडाऊ मैं तो भारत देख घबराऊ bina par kaise sang udau main bharat to dekh gabrau

बिना पर कैसे संग उडाऊ,

मैं तो भारत देख घबराऊ।।टेर।।

 

दोऊ दल भिड़े महाभारत में,

अण्‍डे कैसे बचाऊ।

चपला होतो संग उड़ाऊ,

अण्‍डे कहां ले जाऊ।।1।।

 

दीनानाथ गोपाल बिना,

किससे अरज लगाऊ।

तुम जानत प्रभु घट घट की,

तुमको क्‍या समझाऊ।।2।।

 

कहत कृष्‍ण सुण धीर धर पंछी,

तोही गजराज पठाऊ।

जे तेरे अण्‍डे दबते दीखे,

घण्‍टा तोड़ गिराऊ।।3।।

 

इतनी सुणकर तृप्‍त भयो पक्षी,

चरणन शीश नमाऊ।

सूर सहाय करी अण्‍डन की,

जनम जनम जस गाऊ।।4।।

जपो क्‍यूं ना राधेकृष्‍णा फेर पछतावोगे japo kyu na RadheKrishna pher pachtavoge

जपो क्‍यूं ना राधेकृष्‍णा,

फेर पछतावोगे।।टेर।।

 

जिसने तुमको जन्‍म दिया,

याद कबहूं ना किया।

ऐसी नर देह बन्‍दा,

फेर नहीं पावोगे।।1।।

 

त्रिया और कुटम्‍ब के ताई,

रात दिन भाग्‍यो डोले।

संग ना चलेगा कोई,

भरम गमावोगे।।2।।

 

जमदूत लेने आवे,

कोई ना छुड़ाने पावे।

पूछेगा हिसाब प्‍यारे,

क्‍या बतलावोगे।।3।।

 

नाम के जपे से बन्‍दा,

छूटत चौरासी फन्‍दा।

सूर के किशोर स्‍वामी,

फेर नहीं आवोगे।।4।।


छांडि मन हरि विमुखन को संग भजन लिरिक्‍स chaadi man hari vimukhan ko sang bhajan



छांडि मन हरि विमुखन को संग,

जांके संग कुबुद्धि उपजत हैै,

परत भजन में भंग ।।टेर।।


कहा होत पय पान कराये,

विष नहीं तजत भुजंग।

कागा ही कहां कपूर चुगाये,

स्‍वान नहाये गंग ।।1।।


खर को कहां अरगजा लेपन,

मरकट भूषण अंग ।

गज को कहां नहाये सरिता,

बहुरी धरे खहि छंग ।।2।।


पाहन पतित बान नहींं बेधत,

रीतो करत निषंक।

सूरदास खल काली कामरी,

चढ़त न दूजो रंग ।।3।।




प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो भजन लिरिक्‍स prabhu ji mere avgun chit na dharo bhajan



प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो,
समदरसी है नाम तुम्‍हारो,
चाहो तो पार करो ।।टेर।।

इक लोहा पूजा में राखत,
इक घर बधिक परो।
पारस गुण अवगुण नहीं जाणत,
कंचन करत खरो ।।1।।

एक नदिया इक नार कहावत,
मेलो ही नीर भरो।
जब मिलके दोऊ एक बरण भये,
सुरसुरी नाम परो ।।2।।

एक जीव एक ब्रह्म कहावत,
सूर श्‍याम झगरो।
अब की बेर मोहि पार उतारो,
नहीं पन जात टरो ।।3।।




तुम मेरी राखो लाज हरि भजन लिरिक्‍स tum meri rakhi laaj hari bhajan



तुम मेरी राखो लाज हरि,
तुम जानत हो अन्‍तरयामी।
करनी कछू न करी ।।टेर।।

अवगुण मोसे बिसरत नाही।
पल छिन घड़ी घड़ी ।।1।।

सब प्रपंच की पोट बांध के।
अपने शीश धरी ।।2।।

दारा सुत धन मोह लियो है।
सुद्धि बुद्धि सब बिसरी ।।3।।

सूर पतित को बेगा उबारो।
अब मेरी नांव भरी ।।4।।




सबसे ऊंची प्रेम सगाई भजन लिरिक्‍स sabse unchi prem sagai bhajan



सबसे ऊंची प्रेम सगाई,
दुर्योधन के मेवा त्‍यागे।
साग विदुर घर खाई ।।टेर।।

झूटे फल शबरी के खाये,
बहु विधि स्‍वाद बताई।
प्रेम के बस नृप सेेेवा कीनी,
आप बणे हरि नाई ।।1।।

राजसूू यज्ञ युधिष्‍ठर किनो,
तामे झूठ उठाई।
प्रेम के बस पारथ रथ हांक्‍यो,
भूली गयो ठकुराई ।।2।।

ऐसी प्रीती बढ़ी वृंदावन,
गोपियन नाच नचाई।
सूर कूर इही लायक नाही,
कहा लग करूं बड़ाई ।।3।।




हरि तो हरि जनां के बस भाई भजन लिरिक्‍स hari to hari jana ke bas bhai bhajan



शबरी जात भीलणी कहिये,
बोर बिणबा आई।
ऐट्या बोर आरोग्‍या ईश्‍वर,
कर कर मन में बड़ाई ।।1।।

हरि तो हरि जनां के बस भाई,
ऊंच नीच में सामल भेलाे।
लोग करे चतराई ।।टेर।।

शबरी का बोर सुदामा का चांवल,
करमा का खीचड़ खाई।
दुर्योधन का मेवा त्‍याग्‍या,
साग विदुर घर खाई ।।2।।

नीचां कुल रोहिदास जी का कहिये,
मांडू गढ़ के मांई।
निर्मल भक्ति उनकी कहिये,
उल्‍ट गंगा घर आई ।।3।।

बालकनाथ जी जात का सरगरा,
पंचिया गढ़ के माई।
निर्मल होय धण्‍या के आया,
पांडवांं के शंख पुराई ।।4।।

संता के खातर ओतार धार्या,
कुल का काण नाहीं।
सूरदास की आ ही विणती,
आप श्रीमुख गाई ।।5।। 

मन रे राम भजे डर कांको भजन लिरिक्‍स man re Ram bhaje dar kako bhajan lyrics



मन रे राम भजे डर कांको,
भजे ज्‍यांरो विश्‍वास राखज्‍यो,
सायब भीडू थांको ।।टेर।।

सरियादे सायब जी ने सिवरिया,
राख भरोसो वांको।
मन्‍जारी का बच्‍या उबार्या,
आकोई आवड़ो पाको ।।1।।

प्रहलादजी परमेश्‍वर ने सिवरे,
सार्यो काज संज्‍या को।
खम्‍भ फाड़ धणी दरसण दीदा,
बचन फल्‍यो पिता को ।।2।।

इधर केरवा उणर पांडवां,
है मरबा को नाको।
पांडवा की भीड़ कशन चढ़ आया,
बाल हियो नहीं बांको ।।3।।

द्रोपदी को चीर दुशासन खींचे,
चहुं दिश व्‍हग्‍यो हाको।
खेच्‍यो चीर खेच्‍यो नहीं वासे,
पापी पच पच थाको ।।4।।

भारत में भंवरी का इंडा,
बल्‍यो कालजो वांंको।
गज की घंटा इंडा पर ढाकी,
तीर मोकलाई फांको ।।5।।

केरवा को मू आयो खन्‍दायो,
नहीं है दोष गुरां को।
रख विश्‍वास थापाना थापी,
गोड लग्‍यो आम्‍बा को ।।6।।

गज और ग्राह लडे जल भीतर,
लड़त लड़त गज थाको।
तिल भर सूण्‍ड रही जल बारे,
गरूड़ छोड़ कर भागो ।।7।।

कीने केऊ कीने सुणाऊ,
सार्यो काम गणा को।
''सूरदास'' की आई वीणती,
पत पाना की राखो ।।8।।




जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...