प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो भजन लिरिक्‍स prabhu ji mere avgun chit na dharo bhajan



प्रभुजी मेरे अवगुण चित न धरो,
समदरसी है नाम तुम्‍हारो,
चाहो तो पार करो ।।टेर।।

इक लोहा पूजा में राखत,
इक घर बधिक परो।
पारस गुण अवगुण नहीं जाणत,
कंचन करत खरो ।।1।।

एक नदिया इक नार कहावत,
मेलो ही नीर भरो।
जब मिलके दोऊ एक बरण भये,
सुरसुरी नाम परो ।।2।।

एक जीव एक ब्रह्म कहावत,
सूर श्‍याम झगरो।
अब की बेर मोहि पार उतारो,
नहीं पन जात टरो ।।3।।




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