पाप जड़े परसण करिया,
हरषे हरामी आकड़ पडिया।
धर्म करो धोखो मत आणो।।टेर।।
होय न बोपारी मारा सतगरू आया,
हीरा जहाज भर लाया।
हीरा मोती माणक लाया,
सोदो करे साहूकार मल्या।।1।।
मैं तो दाता थांका दुरबल गुमास्ता,
बणज करां पूंजी आप दिया।
धन धण्या को करां कमाई,
रतन गहरा भण्डार भरिया।।2।।
तीजो बन्दो पराई ठग-ठग खावे,
पेट भरे फर-फर चर्या।
गपताऊ मार पेड़ी गुरजा की,
राचो मती पतरिया।।3।।
पराधीन होय परदे जावे,
सांच कमावे हीरा की कणी।
प्रेम प्रीतीऊ भक्ति कमावे,
लाख चौगुणा वा लुण्या।।4।।
उड़ा नीर अथंग जल भरिया,
नांव चला भाई नांवडिया।
थाक्या पछे दौड़ नही पावे,
नफो व्हे थारे नांव खड्या।।5।।
महर कीदी माने सतगरू दाता,
धोरी धर्म बतायो धण्या।
लाडूरामजी शरणे कनीराम बोले,
हाथे आई हीरा की कण्या।।6।।