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हरि जपसी होय हरिजन प्‍यारा hari japsi hoy harijan pyara kood kubadh se nyara



हरि जपसी होय हरिजन प्‍यारा, 

रहे कूड़ कुबध से न्‍यारा।।टेर।।


सतगुरू मिलिया समझ जब आई,

शब्‍द किया विस्‍तारा।

समझ शब्‍द मिल ताली लागी,

मिटग्‍या भरम अन्‍धेरा।।१।।


प्रगट पिव ज्‍यां ज्‍योति मिलाई,

ज्‍यां का सकल पसारा।

सामिल सब सूु न्‍यारा,

बांका वार न पारा।।२।।


पांच तत्‍व  तन में गुण तीनू,

निज गुण सूं है न्‍यारा।

पांच तीन बिच बसती,

ज्‍योति निरखत होवे विस्‍तारा।।३।।


माया फन्‍द जंजाल झाल बिच,

उलझ रया जग सारा।

सुलझा जो सन्‍त शब्‍द पिछाणा,

काया बिच करतारा।।४।।


ब्रह्म ज्ञान गुरू गम का गेला,

चलणा कठिन करारा।

''लिखमो'' कहे वह सन्‍त है बिरला,

तन मन करे इकतारा।।५।। 

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...