इण विध सायब सिंवरो भाया,
सिंवर सिंवर फल पाया।। टेर।।
सांने मन सायब ने सिंवरो,
सोजो सुन्दर काया।
त्रिभिणी के रंग महल में,
सतगुरू अमी बताया।।1।।
काया बाड़ी सींचे माली,
बंक नाल रस पाया।
अजब फुल बणिया बाड़ी में,
फल संचियारी पाया।।2।।
पीर पैगम्बर देव दाणवा,
सब अखघड़ की माया।
अलख पुरूष तेरा पार न पाया,
गेला अनन्त बनाया।।3।।
मेहर हुई जद महरम पाया,
दिल अपणा पचाया।
गुरू के शरणे लखो लिखमा,
गंगा गरीबी नहाया।।411