माटी का बर्तन घड़ां,
मांकी जात कुम्हार।।टेर।।
घड़ घड़ उन्दा पाडिया,
आच्छा कीदा त्यार।
आवड़ा में अग्नि मेली,
या प्रजापत की नार।।1।।
अवड़ा में बच्या रोवे,
मनकी रोवे बाहर।
सर्यादे की अर्जी है कि,
बैगा लीजो ऊबार।।2।।
केवे हरणाकुश सुण सर्यादे,
रे सुण सतवंती नार।
होली मू प्रहलाद उबार्या,
आपू ही सिरजनहार।।3।।
जब जब भीड़ पड़ी भगतां में,
आप ही ईश्वर लार।
सर्यादे की बिणती,
भव जल करज्यो पार।।4।।