संत दौलाराम जी के भजन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
संत दौलाराम जी के भजन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

जब तेरा सिर पर काल भुवे है धीरज क्यू नी धरे रे jab tera sir pe kaal bhuve he dhiraj kyu na dhare re

 

जब तेरा सिर पर काल भुवे है।

जल पर हाड़ तरे वो मना भाई,

धीरज क्यू नी धरे रे।।टेर।।

 

ओ मारो मनड़ो माया संग लागो,

माया देख डरो रे।

इण माया ने कर दे पराई,

जांको कारज सरे रे।।1।।

 

इण संग का उलटा मारग,

खोटा करम करे रे।

मान गुमान थारो अलगो मेल दे,

कीड़ा रो कुण्‍ड टले रे।।2।।

 

इण संग चाले रोगी गणे रे,

भोगी भोग करे रे।

रोगी भोगी लोभी कहिये,

तीनूं डूब मरे रे।।3।।

 

सत की नाव हाली समन्‍दरा,

धरती बैठ तरे रे।

धरमी धरमी पार उतरगिया,

पापी डूब मरे रे।।4।।

 

जाने सतगरू पूरा मलिया,

सत को सार करे रे।

कहवे दौलाजी अभे जात का,

मन को मार तरे रे।।5।।

कट जावे लख चौरासी भाई सिमरो आद अविनाशी kat jave lakh chorasi bhai simro aad avinashi

 

सिमरो आद अविनाशी,

भाई सिमरो आद अविनाशी।

सिमरण किया करम कट जावे,

कट जावे लख चौरासी।।टेर।।

 

बाया खेत हेत कर हलिया,

चेत बिना चुग जासी।

बदगी बैल बीज के धोरे,

कण बिना कोई लटासी।।1।।

 

जोगी जंगम सेवड़ा पंडित,

दरवेशी सन्‍यासी।

नाम बिना याने काल ले जासी,

गाल गले बिच फांसी।।2।।

 

पाया नहीं भेद भजन भक्ति का,

कर पाख्‍ण्‍ड पूजासी।

जांके जूत जमा का पड़सी,

सहाय करण कुण आसी।।3।।

 

सेस नाम सिमरिया से बीरा,

कटे न करमा की फांसी।

सौ मण आग लिखी कागज में,

तणीयो जले नहीं घासी।।4।।

 

कस्‍तूरी संग रहे मिरगलो,

फिर फिर सूंगे घासी।

जाके श्‍याम सकल घट व्‍यापक,

भटकत बिन विश्‍वासी।।5।।

 

धणी धर्म हेत का मेला,

रटे संत विश्‍वासी।

कहे दोलो प्रताप गुरां का,

अमर लोक पद पासी।।6।।

जाणेला जाणनहारा कोई समझेला हरिजन प्‍यारा janela janan hara koi samajela harijan pyara

जाणेला जाणनहारा,

कोई समझेला हरिजन प्‍यारा,

भक्ति का बड़द बिचारा।।टेर।।

 

पहली भक्ति कहिये सरवणा,

दूजी वन्‍दन जाण।

तीजी भक्ति पद सेवणी,

चोथी ने कीर्तन जाण।।1।।

 

पांचवी भक्ति दास कुवावे,

छठी हरजन जाण।

सातवी भक्ति सुकोपति है,

उत्‍तम आठवी ने जाण।।2।।

 

नोमी भक्ति अलपण कहिये,

तन मन धन कुर्बाण।

भक्ति भेलो जोग कहिये,

जोग जुदा मत जाण।।3।।

 

परा परेमी भक्ति कहिये,

दोनो है अदकार।

रूपनाथ माने सतगरू मिलिया,

दौलोजी करे पुकार।।4।।

होठ कण्‍ठ जीब्‍या से न्‍यारा न लख सबद निरखोजी निजधारा hoth kanth jibya se nyara na lakh sabad nirkhoji

 होठ कण्‍ठ जीब्‍या से न्‍यारा,जीब्‍या से न्‍यारा।

न लख सबद निरखोजी निजधारा।।टेर।।

 

सात सबदा का करोजी बिचारा,

तराम सबद कुण अधिकारा,

कुण सबद से थे उतरोला पारा।।1।।

 

न लख इ पद का थे करोजी बिचारा,

ये पद तो पैदा से न्‍यारा,

जाणे कोई जाणनहारा।।2।।

 

आद सबद से आरम्‍भ सारा,

न लख सबद उपावण हारा।

सबद से पारस रूप रस गंधा,

चित मन बुद्धि अहंकारा।।3।।

 

सोहं सबद सूं हलप उचारा,

हली हलप चली चौधारा।

वां से उपनी तीनूई धारा,

धार मुकार के बीच है करतारा।।4।।

 

खट ज्योती है न्‍यारा,ज्‍योती है न्‍यारा,

वां में है आपका अनुसारा।

नाभ्‍या करण पुराण अठारा,

पांच तीन में पच पच हारा।।5।।

 

भक्ति के काज चूई निसारा,

ओम सोम मे उलझग्‍या सो न्‍यारा।

कसीविध होवेला वांका,

भव जल पारा।।6।।

 

कहवे दौलजी सबद निज धारा,

अणी माये सात सबदा का हन्‍सारा।

इणी विध होला वांका,

भव जल पारा।।7।।

साधू भाई सुुुणो बड़द भक्ति का कर दिल साफ काप नहीं रखना sadhu bhai suno badad bhagti ka kar dil saaf


साधू भाई सुुुणो बड़द भक्ति का,
कर दिल साफ काप नहीं रखना।
पण्‍ड में पाव रत्‍ती का सरधू भाई।।टेर।।

सन्‍त सभाव सुणो सतवाद्या,
केवल लच भक्ति का।
डड की नींव दुरस कर दीज्‍यो,
बणे महल मुक्ति का।।1।।

आटू असट दवादस अजपा,
लखण बतीसो नीका।
सोला सार पांच खण कहिये,
चार कलश करणी का।।2।।

शील संतोष सहज धुन कहिये,
नरभे ज्ञान तिरगुण का।
करो बिचारा भंभेक भजन का,
सात शब्‍द सुणे जींका।।3।।

अंतकरण का अंग पलटावो,
दो जावण जुगती का।
तज दस दोष मोक्ष फल पावे,
जीके कइ कारण मुगत का।।4।।

नरबल नर सीगा साज,
मुख मारग मुगत का।
सोला सार बचन के सारे,
जतन राखजो जीेका।।5।।

धरिये दृष्टि नाशका ऊपरे,
नरमल नीर उसीका।
छ: सौ सांंस कैसा कहिये,
रटिया नाम हरि का।।6।।

 कर जतन मतन सब त्‍यागजो,
जहां मन जोग जती का।
धुुर लग अटल चले नहीं,
चित मन आसण अगड़ मती का।।7।।

शील संतोक तो समरण राखो,
त्‍याग करो तपती का।
समरण इष्‍ट हरि रस पीदो,
जांके ओर रस सब फीका।।8।।

भक्ति भाव क्षमा आदरणी,
धीरज लच्‍च धरती का।
दिल दरियाव समझ का सागर,
कारण करोड़पति का।।9।।

हर कर ने हरिजन आया,
मन भर साद मती का,
जोग बिजोग कछू नहीं जाणे,
संत समागम नीका।।10।।

उद बुद धार उलजे उर में,
कर दो रोज मजी का।
काटो करम पास भरम दया,
मौसम नहीं मुगती का।।11।।

कोइक दोष अकर का टालो,
कोइक बार तथी का।
कोइक घर आदी रम उलजिया,
भरम मिटा नहीं जी का।।12।।

तीन दोष तन का टालो,
तीन दोष मन जी का।
चार दोष बचन का टालो,
और दोष है कीका।।13।।

पालो नेम भरम न राखो,
नगतर बार तथी का।
सदाव्रत बांटे सतवादी,
जारे सरबन्‍द नीका।।14।।

पतिव्रता जार नार कहीजे,
पाले वचन पत‍ि का।
दावणगीर करे नहीं बचन कूं,
जीने सहज बड़द शक्ति का।।15।।

साजे संत पंत का पूरा,
जोगाराम मुगती का।
कर निज धरम कर गुरू सेवा,
चढ़े कलश करणी का।।16।।

दौलोजी कहे भाग जीका बढिया,
पुन्‍न पुरबला तीका।
मोर छाप परवाणा लीना,
कारज सरिया जीका।।17।। 

चेतन आप चराचर व्‍यापक सतगरू ने समझाया chetan aap charachar vyapak satguru ne samjhaya

शब्‍द भभेकी सतगरू करणा,
समज्‍या जो सुख पाया।
चेतन आप चराचर व्‍यापक,
सतगरू ने समझाया।।टेर।।

जन्‍तर मन्‍तर जादूू टोना,
कर पाखण्‍ड पूजाया।
भक्ति ने छोड़ भूतां में भलिया,
मूवा मसाण जगाया।।1।।

काया बैराट देही का फोटू,
मूरती आगे ठहराया।
काया मटगी बैराट मटग्‍यो,
कोइक सुरगा पाया।।2।।

बोलता पुरूष ने दुरस कर देखो,
क्‍यू सुन्‍न मे उलजाया।
उनके संग कबू नहीं भूलू,
भूला बेराग मिटाया।।3।।

बार आठ बत्‍तीसो मिलकर,
अक्षर बावन कुवाया।
ग्‍यारा जपा की गरज कोयने,
खाली नेण दुखाया।।4।।

दौलारामजी सतगरू मिलिया,
नाजी कह समझाया।
छोगादास याद सतगरू की,
मोकस पाद उड़ाया।।5।।

राम नाम की रटना राखो भजन लिरिक्‍स Ram naam ki ratna rakho bhajan



राम नाम की रटना राखो,
आठ पोहर एक धारा है।
ज्ञानी साधू ज्ञान कर पूंगा,
पाया मोक्ष द्वारा है ।।टेर।।

गम कर ज्‍यारा करो बिचारा,
गुरगम भेद अपारा है।
अखण्‍ड शबद की पाया पारखू,
धोकिया गरू द्वारा है ।।1।।

धर असमान पवन नहीं पाणी,
शशि भाण नहीं तारा है।
नकलंग नाथ जात बना जोगी,
ऊला सब अवतारा है ।।2।।

राम नाम का सकल पसारा,
अखे जोगी फिर न्‍यारा है।
रहता जोगी रजाेेगुण बारे,
जोगी असंग जुगां रे है ।।3।।

सायब सबके सामल बोले,
समज्‍या ने इतबारा है ।
भूल्‍यो जीव भेद नहीं जाणे,
भटकत फिरे गंवारा है ।।4।।

पांच सात नौ बारा भेला,
चार चार फेर न्‍यारा है ।
चोका आगे कहिये ऐको,
करज्‍यो संत बिचारा है ।।5।।

दौलारामजी सतगरू मिलिया,
नांजी दिया बिचारा है।
कहे ''छोगजी'' सुणो भाई साधा,
एक नाम नज धारा है ।।6।।




जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...