सिमरो आद अविनाशी,
भाई सिमरो आद अविनाशी।
सिमरण किया करम कट जावे,
कट जावे लख चौरासी।।टेर।।
बाया खेत हेत कर हलिया,
चेत बिना चुग जासी।
बदगी बैल बीज के धोरे,
कण बिना कोई लटासी।।1।।
जोगी जंगम सेवड़ा पंडित,
दरवेशी सन्यासी।
नाम बिना याने काल ले जासी,
गाल गले बिच फांसी।।2।।
पाया नहीं भेद भजन भक्ति का,
कर पाख्ण्ड पूजासी।
जांके जूत जमा का पड़सी,
सहाय करण कुण आसी।।3।।
सेस नाम सिमरिया से बीरा,
कटे न करमा की फांसी।
सौ मण आग लिखी कागज में,
तणीयो जले नहीं घासी।।4।।
कस्तूरी संग रहे मिरगलो,
फिर फिर सूंगे घासी।
जाके श्याम सकल घट व्यापक,
भटकत बिन विश्वासी।।5।।
धणी धर्म हेत का मेला,
रटे संत विश्वासी।
कहे दोलो प्रताप गुरां का,
अमर लोक पद पासी।।6।।
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