हंसा दुरमति छोड़ दे रे प्यारा,
होय निरमल घर आव ।।टेर।।
दूध से दही होत है रे प्यारा,
दही मथ माखन आय ।
माखन से घीरत होत है रे प्यारा,
वो नहीं छाछ समाय ।।1।।
सांटे से गुड़ होत है रे
प्यारा,
गुड़ से शक्कर होय ।
शक्कर से चीनी होत है रे
प्यारा,
गुरू मिले मिश्री होय
।।2।।
चीनी छिटकी रेत में रे प्यारा,
गज मुख चुगी नहीं जाय ।
अंग पलट झीणा होत है रे प्यारा,
होय कीड़ी चुग जाय ।।3।।
दागो लागे शील को रे प्यारा,
सौ मण साबू नहीं धोय ।
बार बार प्रमोदिये रे प्यारा,
कौआ हंसा नहीं होय ।।4।।
आप मनोरा होत है रे प्यारा,
बचन फिरे चौबार ।
कहत कबीर धर्मीदास ने रे
प्यारा,
वो री अगम अपार ।।5।।