घणी दूर से चाल रह्यो
थारी गाडूली की लार ।
गाड़ी में बिठाले बाबा,
जाणो है नगर अंजार ।।टेर।।
नरसी बोल्यो वठे चाल थू
कई करसी,
इण कपड़ा के माय वठे सींया
मरसी ।
टूटी गाड़ी, बूढ़ा बलद्या,
पैदल जासी हार ।।1।।
नानी बाई रो भात देखबा
चालां ला,
आनो पावली थाली मांयने
नाकां ला ।
दोय दिन जीमण री वांकी,
राखां ला मनवार ।।2।।
ज्ञानदास जी बोल्यो रे
तूम्बा फोड़ेला,
सूरदास जी बोल्या गाड़ी
ने तोड़ेला ।
घणी भीड़ में टूटेला म्हारा,
इकतारा को तार ।।3।।
झोली में ले लीनी करोती और पाती,
किशनो म्हारो नाम जात रो
मैं खाती ।
चिंता की कोई बात नहीं
थारी,
गाड़ी देऊंला सुधार ।।4।।
जूड़ा ऊपर बैठ हांकस्यां
में नारा,
थे करजो विश्राम दबास्यूं
पग थारा ।
दोय घड़ी के तड़के थाने,
पहुंचाऊ नगर अंजार ।।5।।
टूटी गाड़ी देखो आ विमान
बणी,
नरसी गावे भजन सुणे म्हारो
श्याम धणी ।
सगला मोड्या मोर थपेड़े,
जीतो रह मोट्यार ।।6।।
भोला सा भगता का भाग तो अब
जाग्या,
दीनबंधु भगवान भाग मोटा
पाग्या ।
किशनो खाती करबा लागो,
संतो की मनवार ।।7।।