इशक की आशिक जाणे बात,
सतगरू बाण दिया है शब्द का,
घूम रह्या दिन रात ।।टेर।।
गूंगे के मन सपनो आयो,
सूतो सेजा रात ।
उठ परभात कह्यो नहीं जावे,
सैन करे वो हाथ ।।1।।
मन भंगवा विरह की भभूती,
प्रेम कटोरा हाथ ।
कोई नर पीवता हो तो आओ,
चलो हमारे साथ ।।2।।
अंतर गति की कुण आगे कहूं,
सभी अभेदू साथ ।
लागी डोर डोर नहीं छूटे,
जाणे दीनानाथ ।।3।।
सतगुरू मुझ पर कृपा कीनी,
सर पर धरिया हाथ ।
हरीराम जोग की महिमा,
नहीं बैरागी रे जात ।।4।।