हरि गुण लखु कहां बुद्धि मेरी,
कठिन भक्ति हरि है तेरी।।टेर।।
कर्मा बन्धन आधर में उलझयो,
कहां कर्ता कर्णी मेरी।
महर विश्वास जेलावो,
कीर्त भक्ति करूं तेरी।।१।।
मैं सत धारि माया में मोहित,
पांच पचीस लग्या केरी।
धाीरज दो तो ध्यान धरूं,
सोजी दो भाव भगत केरी।।२।।
भव सागर में भूलत भूलत,
पाई श्याम शरण तेरी।
मुझ बेगम को गम दो गोविन्द,
सो विध लीव लगे मेरी।।३।।
करड़ा कर्म मुझे क्यो दो,
शक्ति सांच सिमरण केरी।
कर्म चौक में ब्रह्म विराजे,
परसूं समझ शब्द केरी।।४।।
पदवी दीवी पाल परमेश्वर,
प्रतीज्ञा बाना केरी।
कलजुग कलम राख करणीगर,
निर्मल बुद्धि कर दो मेरी।।५।।
भगवत भला विचार बताया,
सत संगत साधा केरी।
कह ''लिखमो'' साधा में लाघी,
भक्ति भेेद त्रिगुण तेरी।।६।।