बापजी सिमर्या साधे आवो,
हो अजमाल सुत देव द्वारकारा नूर कला बरतावो ।।टेर।।
सिवरे रामदे सुख उपजे,
सिंवरया से विघन मिटावो ।
कष्टकार कमी रा काने,
सुख सांयत बरतावो ।।१।।
साहारो साध समद लग सुणायो,
अंतरगत लख पावो ।
कहे पोबारा बोयतो तारयो,
चउ दिश पर्चाेे चावो ।।२।।
दिन दिन जोत जगत में बधती,
अनवी अलख निवावो ।
हो निकलंक थारी कला चउं दिश,
पर्चे सूं पीर कहावो ।।३।।
सुख दाता दुख दूर हरण,
रिद्धि रोजी बरगत बपरावो।
धणी होय धणीयाप दिखावो,
बाना राेे बिरध बंधावो ।।४।।
वर्ण छतीस राजने वर्णे,
पर्चो कर प्रजा निवावो।
आशा बंध री आशा पूर्वो,
पर उपकारी कहवावो ।।५।।
जाण ओलगुं उपरे कीजो,
धोखो मेटो धाीर बंधावो ।
कहे लिखमा कर जोड़ कंवरजी,
नेकी राज निभावो ।।६।।