सिवरू शारदा सिवरू शारदा,
मारे है मलबा की तरका।
पीर ने मनाऊ गरूदेव ने मनाऊ,
राख भरोसा दिल का।।1।।
मथरा में आज्यो पावणा,
गोकल में आज्यो पावणा।
मारे है मलबा की तरका,
मलबा के खातिर तोड़ दीना,
फोड़ दीना बाळ दीना।
जाळ दीना पूणी और चरखा,
पूणी और चरखा।।
मुख से बीण बजाओ लालजी,
मान राख सुन्दर का।।टेर।।
जल भरबा ने गई गुजरी,
माथे धरिया मटका।
जल जदी भरबा दूं गुजरी,
टका मेल दे
जल का।।2।।
जल भरबा ने गई गुजरी,
घाट छोड़ गुजर का।
थारे असी गमेडू थाप की,
बेटा है ये नन्द का।।3।।
गरभ भरी मत बोल गुजरी,
तोड़ दूंला अणका टणका।
पकड़ मंगाऊ थारा कंस राव ने,
मैं हूं बेटा नन्द का।।4।।
तीवण तीस बत्तीस लालजी,
करू चूरमा दिल का।
गोकल गढ़ की गुजरी,
कान्हा है मथरा का।।5।।