धन गरू माने आपकी आशा,
तारण तरण अभय पद दाता,
आप स्वामी हम दासा।।टेर।।
बादीघर ने बाग लगाया,
नाना किया तमाशा।
जल की बूंद से पिण्ड बणाके,
भीतर मेली सांसा।।1।।
देह में रोम,रोम के चमड़ी,
चमड़ी में है मांसा।
मांस में हाड़, हाड़ में गुद है,
गुद में बिन्द प्रकाशा।।2।।
बिन्द में पावन, पावन में प्राणा,
प्राणों में पुरूष निवासा।।
बोलत आप और नहीं दूजा,
रोम रोम में बासा।।3।।
यह तो खेल गरूदेव बताया,
मन धरिया विस्वासा।
कल्याण भारती सतगरू देवा,
प्रेरक स्वयं प्रकाशा।।4।।