:: बाबाजी की कुटिया ::
सो जाबा दो न आज की रात,
बाबाजी थारी कुटिया में।
कुटिया में रे थारी मंडिया में।।टेर।।
बिकट बनी सुनसान मांयने,
उत्तराखण्ड एक स्थान।
जयमुनि चेला ने देता,
वेद व्यास गुरू ज्ञान।।
शिर पे मेल्यो गरूजी ने हाथ,
बाबाजी थारी कुटिया में।।1।।
कामदेव ने जीत लियो,
गुरू हुई तपस्या पूरी।
मनमें कियो विचार,
भगत की भगती नहीं अधूरी।।
मा पे राजी राजी हेग्यो दीनानाथ,
बाबाजी थारी कुटिया में।।2।।
धर तरया को रूप गरूजी,
बिकट बनी से चाल्यो।
क्रीम पाउडर टीकी काजल,
तीखो तीखो घाल्यो।।
जाण्या रात में हो गई परभात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।3।।
भरी जवानी देख के,
पड़े टेकड़ी खार।
इन्दर जैसी बणी अप्सरा,
कर सोला सिणगार।।
वा तो हंस हंस कर रही बात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।4।।
बाबाजी की कुटिया में,
तरीया को कई काम।
रेबा दो रेबा दो बाबाजी,
आज की रात।।
थाके लाम्बा लाम्बा जोडू दोनू हाथ,
बाबाजी थारी कुटिया में।।5।।
मारी भरी जवानी का,
गणा डोले दुश्मण बेरी।
घरे अकेली कूकर जाऊं,
हो गई रात अन्धेरी।।
गयो सूरज नारायण आंथ,
बाबाजी थारी कुटिया में।।6।।
जा चलीजा जा चलीजा कुटिया में,
सो आकलक्यो लगार।
मारी भगती में भंग पड़ जासी,
थू मत आजाजे बाहर।।
कांई थू छे थू छे तरया की जात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।7।।
आधी रात काटी बड़ी मुसकिल,
थाती के पाण।
मन ने गणो समझायो,
फेर भी आग्यो दूध उफाण।।
मैं ता जीमूलां जीमूलां भूरा भांत,
बाबाजी थारी कुटिया में।।8।।
मची खलबली तन में,
ऐसी आग लगी है बदन में।
कुण देखेला बन में,
आगई बाबाजी के मन में।।
दी दी तुम्बी रे चिमटा रे लात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।9।।
जूड़ी सांकल का किवाड़ मत पाड़े रे।
बाबाजी मने सोबा दे ।।टेर।।
सूती हो तो जाग छोकरी,
कर कर नींची नाड़।
कुटिया मांय काम छोकरी,
जल्दी खोल किवाड़।।
साधू होकर नीत क्यू बगाड़े रे,
बाबाजी मने सोबा दे।।1।।
बण बेठो बगलो भगत,
थू निकल्यो पूरो ऐदी।
साधू नहीं स्वादू है थू,
जाण गई अब मैं भी।।
ज्यादा जोर से हेला तो मत पाड़े रे,
बाबाजी मने सोबा दे।।2।।
कर ईश्वर को ध्यान,
माला फेर रे बाबाजी।
करले भगती सूं मन राजी,
क्यू कर रियो नाराजी।।
संकड़ी छेकड़ में हाथ मत भाड़े रे,
बाबाजी मने सोबा दे।।3।।
ऐसो दू वरदान थने मूं,
बहुत ही आलेसान।
जल्दी खोल किवाड़ छोकरी,
केहणो मारो मान।।
मारा घूंघटा ने मत ना उघाड़े रे,
बाबाजी मने सोबा दे।।4।।
छान फाड़कर बाबाजी,
कुटिया मांये पहुंच्या।
उठा घुंघटो देखे,
फर फर कर रही डाडी मूच्छया।।
गरू चेला का कर दीदा खाटा दांत,
बाबाजी थारी कुटिया में।।10।।
तज तरिया को रूप,
गरूजी असली रूप बणायो।
उठा घुंघटो,
जयमुनि चेला ने रळकायो।।
चेला बहुत कियो रे उत्पात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।11।।
कामदेव ने जीतबो,
है खाण्डा की धार।
‘’भगवान सहाय’’ केवे,
मती लिजो या मारकणी तलवार।।
थाका भला भला होवे इस्मात,
बाबाजी थारी कुटिया में।।12।।