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भाया शरणे आया रो उद्धार करणो वाजिब है sharne aaya ro udhdhar karno vajib hai bhajan lyrics

 

भाया शरणे आया रो उद्धार करणो वाजिब है।

अब ले लो मन में धार सत पे साहिब है।।टेर।।

 

परसूराम ने मुचुकन्‍द को ,

कथा सुणाई एक।

सभी सुणो थे भाइड़ा ,

रखो धरम की टेक।

हो जावे बेड़ा पार।।1।।

 

एक शिकारी ऐसा था ,

करता रोज शिकार।

पशु पक्षी मारकर ,

बेंचे बीच बजार।

करे स्‍त्री संग विहार।।2।।

 

एक दिन वन में घूम रहा ,

आंधी आई अपार।

फिर बादल भी आकर ,

बरसे मूसलाधार।

कई डूब गये मझधार।।3।।

 

कितने ही वृक्ष टूट गये ,

मर गये जीव अनेक।

पाणी इतना बह रहा ,

रस्‍ता न दीखे एक।

अब चले ठण्‍डी बयार।।4।।

 

सर्दी से धूजण लगा ,

बहेलिया वन के माय।

नहीं तो वह चल सके ,

खड़ा रह नहीं पाय।

तो भी मन में पापाचार।।5।।

 

एक कबूतरी पड़ी जमीं पे ,

सर्दी से बेहाल।

 पकड़ बहेलिये ने उसे ,

दी पिंजरे में डाल।

पापी के पाप आधार।।6।।

 

रात अन्‍धेरी हो गई ,

घर है बहुत ही दूर।

वृक्ष देवों की शरण ले ,

सो गया मजबूर।

ऐसे लेय वृक्ष आधार।।7।।

 

उसी वृक्ष की डाल पर,

बेठा कबूतर एक।

मेरी भार्या आई नहीं ,

बाट रहा हूं देख।

घरवाली से चाले घरबार।।8।।

 

घर को घर नहीं कहत है ,

घरवाली घर नाम।

घरवाली के बिना घर ,

होता जंगल समान।

चाहे भरा पूरा परवार।।9।।

 

मेरी भार्या पतिव्रता ,

मुझे जिमा कर खाय।

मैं बेठू तब बैठसी ,

मुझे न्‍हाकर न्‍हाय।

मारा सोया पछे जावे सोर।।10।।

 

खुशी रहूं तो रहे खुशी ,

दु:ख में देवे साथ।

रीस मुझे जब आवती ,

करती मीठी बात।

रहवे पति के अनुसार।।11।।

 

पिंजरे से बोली कबूतरी ,

सुण लो बात हमारी।

द्वारे आया शिकारी अपणे ,

करिये खातिरदारी।

करो खूब आदर सत्‍कार।।12।।

 

कहे कबूतर सुणो शिकारी ,

तुम मेरे मेहमान।

क्‍या लाकर दू आपको ,

जल्‍दी करो फरमान।

मने सर्दी से राखो बचार।।13।।

 

सूखे पत्‍ते तोड़कर कर ,

लीना कुछ ढेर।

लुहार के घर पर गया,

आया अग्नि लेर।

सर्दी मिट गई बदन तपार।।14।।


और अब क्‍या लाय दू ,

बोलो अतिथि राज।

भूख लगी है जोर की ,

करदो प्रबन्‍ध आज।

कैसे करू मैं शिष्‍टाचार।।15।।

 

पास में कुछ है नहीं ,

कहां से लाऊ खाण।

शरीर है किस काम का ,

अग्नि में दे दिये प्राण।

व्‍याध दु:खी हुआ पछतार।।16।।

 

जनम गमायो पाप कर,

खोटो मारो भाग।

अब लाठी पिंजरा छोड़कर,

ले लीना बेराग।

कबूतरी ने काढ़ी पिंजरा बाहर।।17।।

 

बिना पति के जीवणा ,

कोई जीवत धके मसाण।

उसी अग्नि में कूद कर ,

दे दिये अपने प्राण।

दोनों गये स्‍वर्ग के द्वार।।18।।

 

खाणा पीणा छोड़ बहेलिया,

मन में लीनी धार।

परेवड़ा परेवड़ी की तरह ,

उतरू पेली पार।

चल्‍यो जाय जंगल के पार।।19।।

 

जलता जंगल देख के ,

घुस्‍यो शिकारी माय।

जल-जल कर मर गया ,

अगनी माय समाय।

व्‍याध गयो बैकुण्‍ठा द्वार।।20।।

 

अग्नि में तीनों जले ,

पाया ईश्‍वर धाम।

दया धर्म का देख लो ,

कैसा मोटा काम।

कहे भैरू लाल विचार।।21।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...