साधू भाई गुरूमुख ज्ञान विचारा।
एक निजानन्द सब में पूरण,
भ्रांति दोष विडारा।।टेर।।
भ्रांति आभास दोष स्मृति,
अविद्या पुत्र पुकारा।
प्रमेय प्रमाण विपरित असंभव,
दोष उभय नहीं लारा।।1।।
दु:ख में सुख अनित्य में नित्य,
अशुचि में शुचि धारा।
निज भिन्न जग सत्यता भ्रांति,
अनात्म आतम पारा।।2।।
यह सब दोष माया में कल्पित,
निज ब्रह्म शुद्ध अपारा।
तमो अज्ञान मिटाकर अविद्या,
लखे गुरूमुख प्यारा।।3।।
मुकुर ज्ञान भक्ति निज लोचन,
विरती रवि जब न्यारा।
रामप्रकाश आतम मुख लखता,
निश्चय कर निरधारा।।4।।