अनहद
का यह खेल,
काइक
नर पाता है।।टेर।।
एक
बीट फूल चार लगाया,
पान
फूल अति पेड़ न छाया।
पावे
बिरला संत,
अगम
घर जाता है।।1।।
शील
सुन्दर भरा है वहां पर,
नहावेगा
कोई हरिजन जाकर।
करो
गरू से प्रीत,
सीख
लग पाता है।।2।।
अन्धा
बहरा लूला लंगा,
कोई
न कोई करता धन्गा।
समझत
नहीं गंवार,
मूरख
रह जाता है।।3।।
रतनपुरी
ये समरथ सांई,
निरगुण
सार सब दियो बताई।
भजन
भेरियो गाय,
अमर
पद पाता है।।4।।