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अनहद का यह खेल काइक नर पाता है anahad ka yah khel koik nar pata hai

 

अनहद का यह खेल,

काइक नर पाता है।।टेर।।

 

एक बीट फूल चार लगाया,

पान फूल अति पेड़ न छाया।

पावे बिरला संत,

अगम घर जाता है।।1।।

 

शील सुन्‍दर भरा है वहां पर,

नहावेगा कोई हरिजन जाकर।

करो गरू से प्रीत,

सीख लग पाता है।।2।।

 

अन्‍धा बहरा लूला लंगा,

कोई न कोई करता धन्‍गा।

समझत नहीं गंवार,

मूरख रह जाता है।।3।।

 

रतनपुरी ये समरथ सांई,

निरगुण सार सब दियो बताई।

भजन भेरियो गाय,

अमर पद पाता है।।4।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...