हेली ये मान बचन सत् मेरो,
भटकत केम फिरयो मन कंगर,
तांही में पिव तेरो।।टेर।।
धर विश्वास हाल गुरु वचना,
प्रेम प्रीत कर हेरो।
घट में पुरुष बसे अविनासी,
अजर अमर घर तेरो।।1।।
परसो मेेल देश प्रीतम को,
बिन शशी भाण उजियारो।
त्रिविध ताप तांहि नहीं व्यापे,
होवे कर्म झक झेरो।।2।।
अटल स्वांग भाग धन तेरो,
निसदिन भर्म भिचारो।
होय निसंग संग लालन की,
में सो अनन्द घणेरो।।3।।
च्यारूं वेद पुकारे प्रकट में,
निसदिन करे निवेरो।
कह ''लिखमो'' भगवत री कृपा,
मिटे जन्म मरण रो फेरो।।4।।