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संता का सायबा ने सत कर जाणो रूपादे की बैल rani Rupa de ki bel santa ka sayaba ne sat kar jano


 

:: धारू माल रूपादे की बैल ::

 

संता का सायबा ने सत कर जाणो,

जीबो मरबा को राणी भोमती आणो।

बीज न थावर मलसी बार न करोड़,

हेत का हीरा ने राणी लेवो न जोड़।।टेर।।

 

गजानन्‍द स्‍वामी आद शक्ति अवतार आय,

भूलिया हरप माने दीज्‍यो बताय।

सिवरू सरस्‍वती शारद माय,

कष्‍ठ मिटाजो करो मारी सहाय।।1।।

 

धारू धोरे धणी आया आप,

पर हरिया पूरबला पाप।

घट में जपिया अजपा का जाप,

मेट दिया गरूजी तीनों त्राप।।2।।

 

सुख जस मोहरत वार सुवार,

मैं धोकू धणियां का पांव।

पुरूष धारू के घरे उगमसीजी कहाय,

आय सके तो राणी जमला के आय।।3।।

 

उठकर धारू झोली समावे,

गरू उगमसी को मेल्‍योड़ो जावे।

जाय डोडी में अलख जगावे,

आवाज सुण रूपा बारे आवे।।4।।

 

मारो भरतार रिद्धि सिद्धि को नायक,

खोटो निपट खजाणा को खायक।

पहरा में बैठ्यो पोल्‍यो पायक,

इण अवसर जेलू नहीं बायक।।5।।

 

चोरी मत करो चात्रक होय चालो,

बोलो सांच झूठ मत जालो।

वायक प्रेम गरूजी का पालो,

काई करसी थारो रावळ मालो।।6।।

 

सुण सजिया सोलह श्रंगार,

हेम जड़ाव हीरा नंग हार।

झेल सादका बाई हो गई तैयार,

लखण बतीसा ने लीदा लार।।7।।

 

सप्‍त पियाला का बासक राय,

सेवका तणी कीजे सहाय।

अर्ज सुणो पियाला का राव,

कर कृपा धणी बेगो आव।।8।।

 

ऊबी अर्ज करे रूपा राणी,

आरोध्‍या आवो मारा सारंग प्राणी।

कर कृपा धरणी धर काला,

बासक ने मेलो म्‍हारी सेज में रखवाला।।9।।

 

सप्‍त पियाला से बासक आवो,

गरूजी मिलण को लागो उमावो।

प्रसन्‍न होय परसूं संता का पांय,

सर्प देवता मारे सिमरियोड़ो आय।।10।।

 

आया आरोध्‍या बासक राय,

सेप सूंप बाई जमला के जाय।

सुण बिनती बासक हिया प्रसन्‍न,

महलां ने छोड़ चाली गरू दर्शन।।11।।

 

सूता माल सेज बोरंगी,

चोरी कर चाली चात्रंगी।

भरिया थाल मोत्‍या गज ठाट,

आगे जुडिया पोल्‍या का कपाट।।12।।

 

पोलिड़ा रे बीरा पाल उगाड़,

बारे रहगी मारी पाडल गाय।

बछड़ो राम्‍भे म्‍हारे द्वार,

मैं लाऊला हेर सम्‍भाला।।13।।

 

पोलिड़ा रे देर करे मत नाय,

मैं जाऊ जमला रे मांय।

जोवे बांट संता रो साथ,

बायक मेल्‍या गरू धारू के हाथ।।14।।

 

सवा सवा मण का जडिया ताला,

कूंचियां ले गया महलां का माला

कुण री आसंग आज रे देई,

सूता माल जगावा नाई।।15।।

 

राणी आरोधे मन बिच माला,

ताला पर हाथ धर्या उण बेला।

आया धणी दु:ख काटण जाला,

बिन कूंची जड़ पड्या ताला।।16।।

 

करियो आरोध पोल्‍या से जाय,

गरू उगमसी का चाप्‍या पांय।

लज्‍जा लाखो नी मारा भगवत राय,

कर विनती राणी जमला में जाय।।17।।

 

जो परणी मैं मालजी के साथ,

रेण पच पहरी हो जावो रात।

रेण अन्‍धेरी बरसे इन्‍द,

मालजी सो जावे सुख भर नीन्‍द।।18।।

 

जमले मली सतवन्‍ती सूरी,

सदर मते बचनां की पूरी।

प्रसन्‍न होय गई जमला के मांय,

भाईड़ा से मिलिया हेत लगाई।।19।।

 

मोत्‍या पूर्या पचम का पाट,

कंचन कलश माणका को ठाट।

शुभ ओसर गरू पूर्या पाट,

ऊपरे मेल्‍या महीड़ा का माट।।20।।

 

दीपक है महादेव के दरबार,

जोत प्रकाश्‍या भीतर बाहर।

भाईड़ा मल्‍या दूध्‍या मनवार,

संता को सायबो लेसी उबार।।21।।

 

रात्‍यू जागी चंद्रावल नारी,

अकलवन्‍त उठी कुरयाली।

परा जागो नी मारा भोला भरतारी,

भांभ्‍या में मलगी लाडली नारी।।22।।

 

कहे चन्‍द्रावल उठो भरतार,

घड़ी दोयक बाहर हाल।

सोदो न राणी का महल रसाल,

वा तो गई बजाबा तन्‍दूरा ताल।।23।।

 

कहे चन्‍द्रावल सुणो भरतार,

राणी रूपा को थाने गणो इतबार।

कुण का नर है कुण की नार,

वा तो गई सुतकड़ा के द्वार।।24।।

 

मालजी नार निपट नखरायल,

जांने सूप्‍या रायल बनरायल।

सूनी सेज पर हरिया चाँवल,

इण विध आण जगायो रावल।।25।।

 

मारा महल के जुडिया है पोल,

थू मती करे घणी ताराऊ रोळ।

झिलमिल जोत महल में जूती,

अण देख्‍या दोष लगावे दूती।।26।।

 

मालजी गढ़ मेवा का हो जी राज,

बिड़द बड़ा रा लाजे आज।

थे तो हो जी भोला भरतार,

वा तो गई है रिखा के द्वार।।27।।

 

राणी रूपादे को थाणे गणो एतबार,

वा तो गई भांंभ्‍या के द्वार।

अबक भाख मत मेटो मारी काण,

राणी जावे तो पिछम में उगे भाण।।28।।

 

मैं हूं गढ़ मेवा को मारू,

सूती सुहागण महल में सारू।

बड़ा मनख बोले काई करू,

राणी जावे तो कुण धणी लारे करू।।29।।

 

मैं चोपड़ रमिया हित चित प्रीत,

अरद देव उगो आदीत।

धर्म करा एक मन हेत,

मती डाले राणी रंग में रेत।।30।।

 

मन विषिया जन्‍तर अरू मन्‍तर,

नर से नारी बांध विदन्‍तर।

अब माने बात को बायो तन्‍त,

कर कामण बस कीदो कन्‍त।।31।।

 

मालजी नार रात्‍यू ठामिया,

काम करे वां लामक जाम्‍या।

पूर्या कलश कनक की काम्‍या,

भूप ने छोड़कर मलगी भाम्‍या।।32।।

 

उठकर मालजी उपायो क्रोध,

सोकड़ तणा लागा प्रमोद।

बसत घरा में पाड़ दियो विरोध,

सांच झूठ अब लेवालां सोध।।33।।

 

झपक जोत अब दिवले जूती,

थू कहवे रांड हे अणहूती।

राणी तो मारी सेज पर सूती,

अण देख्‍या दोष लगावे दूती।।34।।

 

मालजी बार बार केऊ बिचार,

एक बार देखो महलां पधार।

कुण का नर है कुण की नार,

वा तो गई धारू के द्वार।।35।।

 

सेज सम्‍भालो थोड़ा आगा सरकोनी,

पोडी पदमणी रहवे नहीं छानी।

अठे नहीं चाले आप की मनमानी,

कई अचरज कर गई अचराली।।36।।

 

सेज समाली मालजी और नार,

मांयू बासक उठ्यो भभकार।

पाछा पावड़ा दीदा चार,

डरिया माल ओ काई है बिचार।।37।।

 

कहे चन्‍द्रावल चहूं दिस नाळो,

देखो नी राज रांड को चाळो।

थाने मारबा ने मेलगी कालो,

अतरी सुण कोप्‍यो मतवालो।।38।।

 

हलचल मालजी करे हलाण,

पवंग लीला पर माड्यो मलाण।

इन्‍दर बरसे रेण अन्‍धारी,

चढिया माल दुहाई फेरी।।39।।

 

चढिया माल एकलड़ा असवार,

नाई हजूरियो लीनो लार।

फिर फिर सोधे देव द्वार,

आप चढिया रूपा के भार।।40।।

 

रेण अन्‍धेरी इन्‍दर गाजे,

चहूं दिस ताल मंजीरा बाजे।

बाजे लारे सुणे हे आगे,

यूं माल जी गली गली में भागे।।41।।

 

भागत भागत वेग्‍यो कायो,

नाई जाय खबर ले आयो।

आगे जुडिया हे देव दरबार,

छिपकर बैठी है संता की लार।।42।।

 

संता के बाईजी ढोले है पांव,

गरू उगमसी का पापे पांव।

चोरी मोचड़ी देख कर डाव,

बांध कमर में बैठो राव।।43।।

 

धारू व्‍यापी संता में छोत,

मंदरी पड़ गई दिवला की जोत।

घुल बैठो काई संता में आय,

खबर करो इण कंटक की जाय।।44।।

 

अतरी सुण कर उठ्यो माल,

आज मारग रोक्‍या माल।

आया माल रूपा यह जाणी,

अन्‍तर घट में बात पिछाणी।।45।।

 

उठकर बाई हो गई त्‍यारी,

सब संता से अरज गुजारी।

लेग्‍या माल मोचड़ी मारी,

लज्‍जा राखज्‍यो सहाय निजारी।।46।।

 

सोच भयो सतवन्‍ती सांचे,

वारू बात उपजी आंचे।

रंग महल में पड़ी मारी जाण,

सुर बायो मारी सोकड़ बाण।।47।।

 

रूपा महासती है निज चेली,

मन में सोच करे मत गेहली।

आधी रात की आई थूं ऐकली,

अलख पुरूष थारे हे बेली।।48।।

 

सब संता मिल कीनो आरोध,

लाया धणी मोचड़ी ने सोध।

नयण कीदा जोत ने जाय,

लुल लुल लागी है गुरां सा के पांय।।49।।

 

देख साधू सब सांच पतीजे,

लाख लाख का पांव चंपीजे।

दोय कर जोड़ संता सिमरण कीदा,

दीनानाथ आय दर्शन दीदा।।50।।

 

दोय कर जोड़ ऊबी रूपा बाई,

गरू चरणां में शीश नमाई।

जीवतां रेवालां तो मिलाला आई,

माने भूल मत जाज्‍यो गरू राई।।51।।

 

अतरी सुण बोल्‍या गरू धीर,

साथे मेलूं थारे पिछम को पीर।

वे गुप्‍त रहसी थारे लार,

अजमल सुत ने करू थारे लार।।52।।

 

सब संता के राणी लागी पांय,

मांगी सीख घरां दिस जाय।

हर मिलावे तो मिलाला आय,

संकट बेला में कीजो मारी सहाय।।53।।

 

सत् का शब्‍द सीलवन्‍ती सेली,

महासती ने मोक्ष कर मेली।

चापे चरण गुरासां रा चेली,

मालजी के सामे जाऊं मैं एकेली।।54।।

 

आगे मालजी ऊबा कर कोप,

कठे जावे थूं माने लोप।

ऊबा है गाठा पग रोप,

जाणे सिंग उठ्या कर होप।।55।।

 

धूल जमारो फिट फिट थारी जात,

रात्‍यूं रमी है सूतकड़ा के साथ।

चरण धरण पर मेले है चाल,

पांव धरे तो काढू थारी खाल।।56।।

 

फिट फिट वाली थारी जात,

अकर्म कर्म देख्‍या है रात।

गमकर गरू नहीं थारी साथ,

थाने मारू मैं हात्‍यूं हाथ।।57।।

 

रहवो रहवो माल बको थे कांई,

सूता लोग जगावो नाहीं।

बड़ा घरां का छोरू हा मेई,

हांसी करसी थाकी घर घर मांई।।58।।

 

बूज्‍या बिना पतो गम कांई,

निर्णो काढ़ ने खड़ग लेई।

बिना गुनाह बिना सोला देही,

माने मार पछतावोला थेई।।59।।

 

मार मार कर उठ्या माल,

हाथ खड़ग हथवासी ढाल।

कइे गिया थे रात्‍यू चाल,

माने बतावो थांका हाल।।60।।

 

बाग बगीचा गई मैं राज,

अजब फूलड़ा बीण लाई आज।

कांई थाके कांई माके काज,

झूठ बोलू तो मारजो माराज।।61।।

 

मारा मेवा के सींव के मांई,

बाग बगीचा बाड़ी नांई।

अतरा झूठ बोले थे कांई,

मार्या बिना थाने छोडू नांई।।62।।

 

बाग मंडोवर के अजमेर ,

के अखरे के जैसलमेर।

के चित्‍तोड़ के मेड़ता के माही,

मेवा में बाग बटवाड़ी नाही।।63।।

 

फूल लाया हो तो दिखावो नार,

नहीं तो सहवो खांडा की धार।

अतरी सुण रूपा सिवर्यो करतार,

डूबती जहाज धणी उतारो पार।।64।।

 

हर रिणाकुश कीयो हैरान,

भक्‍त प्रहलाद छोड़ी नहीं बाण।

नरसींग रूप धर्यो जद आण,

जद पधार्या मारा सारंग प्राण।।65।।

 

त्रेता में तारी तारादे राणी,

हरिशचंद्र हिम्‍मत नहीं हारी।

डसिया नाग कंवर उबारी,

वठे पधार्या मारा कृष्‍ण मुरारी।।66।।

 

दुसासण डाणो भयो हे लार,

पकड़ लीदी द्रोपदी नार।

खींचता चीर को आयो नहीं पार,

वठे ही पधार्या मारा कृष्‍ण मुरार।।67।।

 

दुष्‍ट भयो मद कीचक दाणो,

कान केसरी चीर खेचाणो।

अन्‍त नहीं आयो चीर ताणो,

ऐसे आयो नारायण ने जाणो।।68।।

 

सांचा संत साला अरू सूरा,

जाने मल्‍या प्रेम गरू पूरा।

दोरम काट किया हर दूरा,

इण विध कारज सार्या पूरा।।69।।

 

बादशाहब परचां पाथरिया,

सत का करोत सिर पर धरिया।

अधर धार मेरू संत मरिया,

वां संता का कारज सरिया।।70।।

 

जल डूबत गजराज पुकारी,

गरूड़ छोड़ भाग्‍यो गिरधारी।

फन्‍द काट लियो उबारी,

क्‍यू करो जेज बेला हमारी।।71।।

 

चीर उगाड़ माल दूर करिया,

रंग रंग का फूल थाल ठट भरिया।

बरण बरण का फूल पाथरिया,

पर्चो देख मालजी डरिया।।72।।

 

फूल गुलाब चमेली सार,

कली केवड़ा महक अनार।

जूही मोगरा आम अनार,

ऊपरे भंवरा गरे गुंजार।।73।।

 

केल पान गंगाजल नीर,

महके माल सुगन्‍धी समीर।

देख फूलड़ा मन में आयो धीर,

पर्चो दीदो पिछम का पीर।।74।।

 

चंगा चीर रेशमी साल,

माय है अमरत रसाल।

माये महक रिया फूल और माल,

रूपा के हेले आयो दीनदयाल।।75।।

 

धन धन ओ वाली थारी जात,

भली रमी थूं सुतकड़ा के साथ।

रूपादे रतना की राय,

थारा धणी को पंथ बताय।।76।।

 

मैं झूठा सांचा थे भरतार,

अलख पुरूष लख दीनी थारी लार।

बिना प्रतीत पावे नहीं पार,

ओ पंथ मालजी खाण्‍डा की धार।।77।।

 

अतरा दिन राणो रियो अजाण,

इण पंथ की पड़ी नहीं पछाण।

अब न बताओ तो तज दूं प्राण,

झूठ बोलूं तो सुलखजी की आण।।78।।

 

कहे रूपा मैं गरू द्वारे ज्‍यासूं,

कर विनती गरूदेव मनास्‍यूं।

गरू कहवे तो आण सुणास्‍यूं,

गरू आज्ञा बिना नहीं सुणास्‍यूं।।79।।

 

बेगी जावो सतवन्‍ती नार,

बिच में नहीं लगाओ बार।

पाछी राणी जमला ने जार,

गरू चरण में कीनी नमस्‍कार।।80।।

 

शीश नमाय बचन सुणायो,

पर्चो पाय माल बिरदा में आयो।

धन गरूजी अनड़ नमायो,

अब हियो चेली को चायो।।81।।

 

कहवो तो मारग कठण है करार,

अणी चूके तो मारे धार।

जो आवे थाकी लार,

कीजो जीव मार देवे चार।।82।।

 

रेवत मारो थावर बीजो,

संत रा बचन सही कर लीजो।

सपूता का पग धोय कर पीज्‍यो,

कहे रूपा थे भी ऐसे ही रीज्‍यो।।83।।

 

कंवर जगमाल मारो पेला,

राणी चंद्रावल मारो महलां।

छोड़ो गंगाजल मारो जाय,

और मारो थे पाडल गाय।।84।।

 

अतरी सुण चल्‍या कर रीस,

राणी चंद्रावल को काट्यो शीश।

कंवर मार्यो गंगाजल गाय,

चारां ने मारा गरू दिस जाय।।85।।

 

पूंगा जाय जमा में माल,

माल क्रोध लोयाणा चक लाल।

मन में सोच करे संत सूरो,

मैं तो काम कर आयो पूरो।।86।।

 

मन की बात लखी गरू धीर,

हेलो सुण्‍यो पिछम के पीर।

पूरण कलश रतन लायो चार,

बचन मान आयो निज द्वार।।87।।

 

हंसियो पवंग माल निज जाण,

गाय छुकावे बचल्‍यो ठाण।

कंवर झरोखे पेच संवारे,

चंद्रावल सोलह सिणगारे।।88।।

 

नाळे महलां में मेवा को माल,

रम्‍भा ऊबी करे बणाव।

दूणो चढियो सवायो नूर,

अतरी देख आयो संत सूर।।89।।

 

धन धन धर्म धन गरूदेव,

धन रूपा जिसे कीदी सेव।

धन हो पंथ संत जन सारा,

ले शरण गरूजी कीजो उबारा।।90।।

 

देवायत उगमसीजी आया,

पूजलदे पद्मा संग लाया।

सोढ़ा साय सधीरजी बुलाया,

ऐलूं ढेलूं सिद्ध रामदे पधारिया।।91।।

 

रावल माल रूपादे राणी,

जेसल पीर तोलादे कठियाणी।

आया दलीपति राव रणसी,

खीवण मेग कंवर जगमालसी।।92।।

 

धन अजमाल सिद्ध रामदेव पधारे,

आयो सलाख्‍खी लाखो लारे।

धन धर्मा रूपावन्‍ती साथ,

भेला हिया सब देवा को साथ।।93।।

 

मेवो मांगलियो हरबू साथ्‍,

स्‍वार्थियो जाऊ जगन्‍नाथ।

चारू दिशा का संत बुलाया,

आरोध्‍योड़ा गणपति जी आया।।94।।

 

सिद्ध चोरासी गोरखनाथ,

पर्दे रमिया देवा को साथ।

धन रूपा सदर धणी धाया,

मालजी रे आरोध्‍योड़ा आया।।95।।

 

माणक मोत्‍यां का चौक पुराया,

कंचन कलश अधर ठकराया।

सबर भरियो हे गंगाजल नीर,

माये पूर्या अमोलक हीर।।96।।

 

झिलमिल जोत देवा रे जागी,

मेले मल्‍या संत बड़भागी।

धारू रूपा करे कोटवाली,

थावर बार बीज उजाली।।97।।

 

कर्ण सुनाथ माल को लाया,

जोत कलश आगे बैठाया।

पाट पीताम्‍बर पर्दा तणाया,

रतननाथ कुण्‍डल पहराया।।98।।

 

सैली सींगी देवायतजी दीनी,

गरू उगमसीजी कृपा कीनी।

दिया उगमसीजी माने हाथ,

दे गरू मन्‍तर किया शिवनाथ।।99।।

 

धन धन रूपा सदर धणी धाया,

अनड़ माल ने थे आय निभाया।

सब संता के पांय लगाया,

मोत्‍यां कंचन कलश बंधाया।।100।।

 

मेळा में मिल्‍या नर सचियार,

जतरा आया जतरा मालजी की लार।

बंधियो धर्म मालजी की लार,

आया सुनाथ वर्ण मिल चार।।101।।

 

आरती उतारे मालजी की नार,

कंचन थाल कर मांये धार।

सहसर बाती अनन्‍त अपार,

झिलमिल जोत देव दरबार।।102।।

 

हो गई सीख देव दरबार,

संत सब बोल्‍या जै जै कार।

धन धन ओ मालजी की नार,

अनड़ माल ने कीया थे पार।।103।।

 

बन्‍ध्‍यो धर्म मेवा की मांई,

घर घर जोत और जमा जगाई।

वां संता की प्रतीज्ञा पाली,

बाजा बाजे बीज उजाली।।104।।

 

छप्‍पन कला सतगरू जी के सहारे,

धन धननामी धर्म बधारे।

रूपादे की अलख सुधारे,

धन पांचों जगदीश जुवारे।।105।।




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