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अलख लख अधर अखंड़ी काया alakh lakh adhar akhandi kaya so sarvangi

 


अलख लख अधर अखंड़ी काया,
सो सर्वंगी सकल समाया ।।टेर।।


महर हुई मेरे सतगूरू की,

सत् शब्‍द सुणाया।

सुणीया शब्‍द जीव सुख पाया,

ईयुं विश्‍वास समाया।।1।।


समझ शब्‍द मिल मनके पर्चे,

चेत चरण चित लाया।

दिल सुं मालिक दरस्‍या देह मांही,

आप आपकुं पाया।।2।।


इडा पिंगला सुखमण के घर,

बंक बाट बह आया।

दस्‍यीदेव सूरत सेवा में,

रूप वर्ण बिन राया।।3।।


सोहम सिखर बिच श्‍याम सही कर,

रीझ रीझ रिझाया।

रीझिया जद भेद बताया,

रूम रूम मांही लखाया।।4।।


बोलत ब्रह्म कमीसूं कोन,

और सकल सबसब माया।

जिन ओउ सोउ बिच अवगत,

आशण अधर ठहराया।।5।।


जुगति भक्ति की जन कोई जाने,

पस परम पद पाया।

अरस परस होय एकमेक होय,

उहांभो अगम बताया।।6।।


अपरम पार अगम गुरू ऐसा,

खोज्‍या जैसा पाया।

लिखमा कहे कहां लग खोजूं,

ज्‍यां पाया ज्‍यां गाया।।7।।

जल ज‌इयो जिह्वा पापनी राम के नाम बिना रे JAL JAIYO JIVHA PAPNI RAM KE NAAM BINA RE

राम के नाम बिना रे मूरख  राम के नाम बिना रे, जल ज‌इयो जिह्वा पापनी, राम के नाम बिना रे ।।टेर।। क्षत्रिय आन बिना, विप्र ज्ञाण बिना, भोजन मान ...