मन रे चेत सके तो चेत पछतावेगो,
पछतावेगो रे गोता खावेगो।।टेर।।
कीनी लख चौरासी में भरमण,
कीट पतंग और गरजण,
पक्षा पक्षी के बिसासन,
पायो मनख अवतार फेर नहीं पावेगो।।1।।
हे मन थारे मनमें उठे,
थू जाय गरीबां ने लूटे।
थारो रण बेर नहीं छूटे,
पड़सी घर में हाण जब रोवेगो।।2।।
मन थू अल्या गल्या में जांके,
थू तो नार पराई ताके।
वो उणीयारो थारी मां के,
जम पकड़ ले जाय जूता खावेलो।।3।।
है मन ओ कई मन में थारे,
थू तो जीव जंगल का मारे।
वे हे पुरषारथ के सारे,
सीधो नरक में जाय कीड़ा खावेला।।4।।
अब थू मन में करले काबू,
लगाले गरू चरणां को साबू।
थारो मेल कट जाय,
थू बण जाय बाबू।।
कहे हीरो जी भज राम
सुख पावेगो,
मन रे चेत सके तो चेत
पछतावेगो।।5।।